ये बेबसी मिटे तो ग़ज़ल आजकल लिखूं
उरूज
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2212/1211/221/212
दिल की कलम उठा के मैं अब इक ग़ज़ल लिखूं
तेरे हसीन रुख को मैं ताजा कंवल लिखूं
??
उलझे हैं मसलहत जो सभी जिंदगी के अब
उलझन मिटे सभी के मैं अब ऐसा हल लिखूं
??
अपने वतन में फैला हुआ दहशत का जो धुआं
नफरत की आग है ये जिसे मैं गरल लिखूं
??
आओ दिया जलाएं सभी मिलके प्यार का
मुश्किल है जिंदगी जो यहां वो सरल लिखूं
??
बस प्यार हो सभी के दिलों में हसद न हो
तुम साथ हो तो मैं ये अभी से पहल लिखूं
??
आंधी चली है ऐसी यहां उजड़े हैं आशियां
लाके बहार फिर —–से उसे मैं बदल लिखूं
??
उलझे हैं पेंचो ख़म में मेरे दिल की हसरतें
कुछ तो मिले करार कि मैं भी बहल लिखूं
??
दाना न एक जिनके घरों में है आज तक
किस्मत में उनके आज मैं सारी फसल लिखूं
?
होती है मेरी ईद तभी जब तू गले लगे
तेरे मैं इस करम का खुदा का फज़ल लिखूं
??
दुनिया से है सवाल मेरा ” प्रीतम” जवाब दो
ये बेबसी मिटे तो ग़ज़ल आजकल लिखूं
??
प्रीतम राठौर
श्रावस्ती (उ०प्र०)