ये जह्रे जुदाई पिये जा रहे हैं
ग़ज़ल
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शज़र नफ़रतों के उगे जा रहे हैं
मुहब्बत दिलों से मिटे जा रहे हैं
वो जिनके लिए मैंने छोड़ा ज़माना
वही बेवफ़ा हमको किए जा रहे हैं
वफ़ाओं के बदले सितम दिल पे कर के
कई जख़्म दिल पे किए जा रहे हैं
चली एक आँधी ला आशियाना
दिये आस के भी बुझे जा रहे है
क़तर चाहे जितना परिन्दों के पर तू
मुहब्बत के पंक्षी उडे़ जा रहे हैं
अमर नाम होगा यही सोच कर के
ये जह्रे जुदाई पिये जा रहे हैं
जरा देख “प्रीतम” मेरी बेबसी को
ग़मे-आग मे हम जले जा रहे हैं
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
16/09/2017