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26 Jun 2016 · 1 min read

ये आँशू किसके लिये

अपनो ने अपनापन तोडा
गैरों की तो बात ही क्या
उम्मीद भी नाउम्मीद अब
भला ये आँशू किसके लिये..
—————-
सुनो बेटा अब बडा आदमी बन गया
व्यस्त रहता है खुदी में
मैं तो सोच में हूँ , वो मेरे
बगैर कैसे जो रहता होगा
——————
आज जरुरत है मुझे अपनों की मगर
हालातो से मुख्तकर है
लगता अपना नहीं अब कोई
भला ये आँशू किसके लिये
—————
खुदा तू आ के देख जरा
इंसा बहुत बदल गया
मेरे तो आखें भी नम हैं मगर
भला ये आँशू किसके लिये
—————–
जिसपे भरोसा किया
भरोसा भ्रम हो गया
तडप उठती हैं आंखें अब मगर
भला ये आँशू किसके लिये
—————– —–
——————-बृज

Language: Hindi
1 Like · 687 Views
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