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31 Jul 2016 · 1 min read

“यादों के अवशेष”

“यादों के अवशेष”

एक अरसे बाद गाँव में यूँ ही निकल पड़ा
अकेला टहलता हुआ गाँव की सीमा की ओर
सीमा पर जो पुलिया है समेटे हैं हजारों यादें
वो गवाह है हम दोस्तों की मौज मस्ती की,
वो गवाह है हमारी अनकही अधूरी हसरतों की
कितने ही किस्से कहे सुने गए इस पुलिया पर
कितनी ही प्रेम कहानियां बनी बिगड़ी यहाँ
वो आज भी बिखरी पड़ी हैं वहीँ पर कहीं
यादों के अवशेष फैले पड़े हैं वहीँ पर कही
कोई आये और पुनर्जीवित करे उनको
पुलिया बाट जोहती रहती है आज भी
लोग आते जाते तो हैं आज भी वहां से
कोई बैठता नहीं अब उस जगह पर
अभी मैं पुलिया के पास ही पहुंचा था
किसी के सुबकने की आवाज से ठिठक गया,
चारों तरफ देखा मगर कुछ नहीं दिखा
तभी एक मद्धम सी आवाज कानों में पड़ी
कोई कराह रहा था शायद असहनीय पीड़ा से
वो आवाज बोली, मैं तालाब हूँ इस पुलिया का
जहाँ तुम अक्सर कंकड़ डाला करते थे
खुश होते थे मुझमें तैरती मछलियाँ देखकर
और लहराती पनियाली घास देखकर
आज देखो मेरी छाती पर कितने जख्म हो गए हैं
घास की जगह उग आये हैं कंक्रीट के नासूर
चुभते हैं मेरे बदन पर, पीड़ा देते हैं मुझे
उजाड़ दिया मेरा फल फूला बसा संसार
कुछ स्वार्थी मनुष्यों की महत्वाकांक्षाओं ने
बसा लिया अपना घर, सैकड़ों घर उजाड़ कर
अब तो मेरे अवशेष ही बचे रहेंगे
मैं भी अब तुम्हारे किस्सों में ही जिंदा रहूँगा |

“सन्दीप कुमार”

Language: Hindi
426 Views
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