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11 Dec 2016 · 1 min read

मोहब्बत के शरर का नूर है

मोहब्बत के शरर का नूर है
पास है खुशी उदासी दूर है

ज़हन-ए-इंसान ही मयखाना है
जिसको देखो नशे में चूर है

फूलों कलियों की गलियों में भी
ख़ूबसूरती उनकी मशहूर है

हुस्न की दुनियाँ ग़ुलाम उसी की
ज़बान में तहज़ीब-ओ-शऊर है

सूरत भी बहुत खूब सीरत भी
हां वही जन्नत की हूर है

गम को आँसुओं से धो न सकी जो
वो आँख भी कितनी मजबूर है

इल्म वो हुआ ‘सरु’ को दर्द से
अंधेरा भी गम का पूरनूर है

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