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11 Dec 2016 · 1 min read

मोहब्बत की तुमसे रवानी चली है

मोहब्बत की तुमसे रवानी चली है
अब जाके मिरि जिंदगानी चली है

मसला हमसफ़र का हो या मंज़िल का
बात वही फिर से पुरानी चली है

लाई कहाँ से हौसले समेटकर
कज़ा से उलझने आसानी चली है

तुम्हारे शहर की गलियों से तुम तक
मेरी भी अब तो कहानी चली है

ये किसके दिल-ए-गुलशन से महककर
हवाओं की मेहरबानी चली है

दीये आज लेकर आसमानों में
उठके तारों की जवानी चली है

काग़ज़ की ज़मीं पर लफ्ज़ उतारने
हाँ ‘सरु’ की कलम दीवानी चली है

1 Comment · 378 Views
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