हृदय वीणा हो गया
जल उठे साथी तो मेरा चौड़ा सीना हो गया ।
ज्ञानगुरु-चौखट तथा श्रम का पसीना हो गया है।
आह! ना कि आपने फेका था जिस दिन गर्त में।
समय ने पुनि-पुनि सँवारा,हृदय वीणा हो गया।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता