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30 Aug 2016 · 1 min read

मैं कभी चाँद पर नहीं आता

दिल पे कोई असर नहीं आता
याद तू इस क़दर नहीं आता

रात आती है दिन भी आता है
कोई अपना मगर नहीं आता

चाँद आता है बाम पर अब भी
बस मुझे ही नज़र नहीं आता

सारी दुनिया बदल गई होती
मैं अगर लौट कर नहीं आता

हम नमाज़ें क़ज़ा तो करते हैं
ख़ौफ़ दिल में मगर नहीं आता

मौत शायद इसी को कहते हैं
लौट कर जब बशर नहीं आता

ज़ेर-ए- पा मंज़िलें तो आती हैं
सिर्फ़ अपना ही घर नहीं आता

जब ज़मींपर सुकून मिलजाता
मैं कभी चाँद पर नहीं आता

2 Comments · 334 Views
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