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13 Sep 2017 · 1 min read

मैं एक दरिया हूँ

है हासिल जो वो भी थोड़ा नहीं है
ये भी बहुतों ने तो पाया नहीं है

समंदर सा नहीं क़द मेरा तो क्या
मैं इक दरिया हूँ जो खारा नहीं है

जुदा हैं पर निभायेंगे मुहब्बत
मुहब्बत तो फक़त पाना नहीं है

हूँ मैं क्यूँ मुन्तज़िर उसका यूँ जबकि
किया उसने कोई वादा नहीं है

खफ़ा है या उसे करना है दूरी
वो शिकवा आजकल करता नहीं है

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