Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Nov 2016 · 3 min read

मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त

आठवें दशक के प्रारम्भ के दिनों को मैं कभी नहीं भूल सकता। चिकित्सा क्षेत्रा से जुड़े होने के कारण उन्हीं दिनों मुझे दर्शन लाभ प्राप्त हुआ था स्वर्गीय रामचरन गुप्त का। मेरे मुंह से बाबूजी का सम्बोधन निकला और सम्मान में स्वतः ही मेरे दोनों हाथ जुड़ गए। उस समय से मेरा यह नियम हो गया कि मैं प्रतिदिन ही बाबूजी से मिलने लगा और कभी-कभी तो दिन में तीन-चार बार तक भेंट हो जाती।
बाबूजी को ब्रौंकाइटिस और कोलाइटिस रोग थे। दवाओं के बारे में मुझसे पूछते रहते। लाभ भी होता। लेकिन खाने-पीने की बदपरहेजी भी कभी-कभी कर ही लेते थे, जिससे रोग पुनः पनप जाता। वे सबसे ज्यादा अपने पेट से परेशान रहते थे। जैसा कि हमारे देश में हर आदमी जिससे भी अपनी बीमारी के बारे में बात करेंगे तो वह फौरन ही कहेगा कि आप अमुक दवाई खा लें, इसके खाने से मैं या मेरे रिश्तेदार ठीक हो गये। बाबूजी के साथ भी कई बार ऐसा ही हुआ और इसके चलते ही रमेशराज [बाबूजी के बड़े बेटे] मुझे रात में भी घर से उठा-उठा कर ले गये।
एक बार रमेशजी मुझे रात के बारह बजे के करीब बुला लाये। मैंने जो बाबूजी को देखा तो 104 बुखार था। वे बेहोशी की हालत में थे। उन दिनों मलेरिया चल रहा था। मैंने वही इलाज किया। ठीक हो गये। दूसरे दिन जब मैं उनसे मिलने पहुंचा तो वे ठीक थे। लेकिन रात की बात का उन्हें तनिक भी पता नहीं था।
नवम्बर-1994 में उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो चली थी। मैंने बाबूजी को एक रिक्शे में जाते हुए देखा तो मुझे लगा कि वह अधिक ही बीमार हैं। मैंने रमेशजी से इस विषय में बात की तो पता लगा कि वे आयुर्वेदिक दवा खा रहे हैं। एक दिन में 35-40 बार शौच चले जाते हैं। मैंने तुरन्त कहा कि उनके शरीर में पानी की कमी हो जायेगी और गुर्दो पर अतिरिक्त भार भी पड़ेगा। कभी भी कुछ अनहोनी हो सकती है। और वही हुआ जिसका मुझे डर था।
अंतिम दिनों की स्थिति यह हो गयी कि चलने-फिरने में परेशानी होने लगी। रात में कई बार पेशाब के लिए उठना, गिर पड़ना लेकिन कोई शिकवा नहीं। एक दिन जब मैं उन्हें देखने गया तो बाबूजी रमेशजी से कह रहे थे कि ‘भइया मोये एक सीढ़ी-सी बनवाय दै। मैं सरक-सरक के टट्टी-पेशाब कूं चलो जाउगो। रात को ठंड में तेरी बहू और माँ कू तकलीफ न होय।’ यह उनके संघर्षशील व्यक्तित्व की ही तो बात है जोकि ऐसी स्थिति में भी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते थे।
वह अपनी बात के धनी और साफ बात कहने वाले थे। मेरी अपनी भी कोई समस्या होती तो बाबूजी बहुत सोच-समझ कर सही परामर्श देते। मेरे साथ उनका व्यवहार पुत्रवत रहा। उनकी कमी मैं हमेशा ही महसूस करता रहूंगा।
आज बाबूजी हमारे बीच नहीं रहे। उनकी स्मृतियां सदैव ही हमारे साथ रहेंगी। साहित्य-चर्चा होती तो वह कहते कि तुम और रमेश जो कविता [खासतौर से मुक्तछंद] लिखते हो, क्या इसी को कविता कहते हैं? यह सुनकर हमें बड़ा अचरज होता। हम सोचते कि वाकई हम उनके मुकाबले कहीं नहीं ठहरते हैं?
मैं उनके व्यवहार में जिस बात से सबसे अधिक प्रभावित हूं-वह था उनका आत्म-विश्वास। कोई भी उदाहरण हो, बाबूजी उसकी पुनरावृत्ति तीन-चार बार अवश्य करते। यह सारी बातें उनकी सच्चाई और आत्म-विश्वास को प्रगट करती हैं।
मेरे बाबूजी दुबले-पतले, अपनी धुन के पक्के, जुझारू, कामरेड साहित्यकार भी थे। एक नेकदिल, ईमानदार इन्सान, दुःखियों के दुःख के साथी थे। ज्ञान का भण्डार थे। ऐतिहासिक ज्ञान इतना कि वह स्वयं में एक इतिहास थे। ऐसे थे मेरे बाबूजी!

Language: Hindi
Tag: लेख
248 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"नजरों से न गिरना"
Dr. Kishan tandon kranti
मन की आंखें
मन की आंखें
Mahender Singh
सियासत में आकर।
सियासत में आकर।
Taj Mohammad
परिवार होना चाहिए
परिवार होना चाहिए
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
#शेर-
#शेर-
*Author प्रणय प्रभात*
माँ आजा ना - आजा ना आंगन मेरी
माँ आजा ना - आजा ना आंगन मेरी
Basant Bhagawan Roy
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
हिन्द के बेटे
हिन्द के बेटे
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
बढ़ी शय है मुहब्बत
बढ़ी शय है मुहब्बत
shabina. Naaz
हमने देखा है हिमालय को टूटते
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
बदल गया जमाना🌏🙅🌐
बदल गया जमाना🌏🙅🌐
डॉ० रोहित कौशिक
अधखिला फूल निहार रहा है
अधखिला फूल निहार रहा है
VINOD CHAUHAN
भाग दौड़ की जिंदगी में अवकाश नहीं है ,
भाग दौड़ की जिंदगी में अवकाश नहीं है ,
Seema gupta,Alwar
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
यह उँचे लोगो की महफ़िल हैं ।
Ashwini sharma
मंजिल छूते कदम
मंजिल छूते कदम
Arti Bhadauria
जो लिखा है
जो लिखा है
Dr fauzia Naseem shad
ज़िन्दगी में किसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के लिए
ज़िन्दगी में किसी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने के लिए
Paras Nath Jha
वो सब खुश नसीब है
वो सब खुश नसीब है
शिव प्रताप लोधी
जीवन सुंदर गात
जीवन सुंदर गात
Kaushlendra Singh Lodhi Kaushal
प्रणय 7
प्रणय 7
Ankita Patel
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
द्वितीय ब्रह्मचारिणी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
2460.पूर्णिका
2460.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
कीमत
कीमत
Ashwani Kumar Jaiswal
हुनर का नर गायब हो तो हुनर खाक हो जाये।
हुनर का नर गायब हो तो हुनर खाक हो जाये।
Vijay kumar Pandey
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
जग-मग करते चाँद सितारे ।
जग-मग करते चाँद सितारे ।
Vedha Singh
*आते हैं जग में सदा, जन्म-मृत्यु के मोड़ (कुंडलिया)*
*आते हैं जग में सदा, जन्म-मृत्यु के मोड़ (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Exhibition
Exhibition
Bikram Kumar
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
आधार छंद - बिहारी छंद
आधार छंद - बिहारी छंद
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
Loading...