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3 Oct 2016 · 1 min read

मेरे देश का किसान

गर्मियों की ढलती शाम को
उसके बदन पर जमी मिट्टी
कपड़ो से कुछ साफ़ हुई सी दिखती है

हाथ उसके भूरे काले
जैसे की पेड़ के तने से
लटकी हुई शाखें लगती है

काले सफ़ेद से बाल उसके
सिर पर बिखरे हुए कुछ ऐसे
कुछ हिस्से मिट्टी से सने कंधों पर
टिके हुए से लगते हैं

एक फटा हुआ सा कुर्ता
उसके गठीले बदन को
ढकने को कोशिश कर रहा है

नंगे पैरों से खेतों में चलता हुआ
मिट्टी से पैरों को रंगता हुआ
कमर पर बंधे गमछे से
चेहरे के पसीने को पोंछ रहा है

आकाश की तरफ टकटकी लगाए
बादलों में बारिश तलाशता
हर साल की तरह इस साल भी
हैरान, निराश, परेशान
मेरे देश का किसान

–प्रतीक

Language: Hindi
454 Views
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