मेरी वाणी को झंकार दे दीजिए
बंजरों में भी जल धार दे दीजिए
निर्बलों को भी कुछ प्यार दे दीजिए
जल न जाये कहीं फिर घरौंदा कोई
मेरे जीवन का भी सार दे दीजिए
नारी खुद ही बनें लाज की रक्षिका
उनके हाथों में तलवार दे दीजिए
अब बहू बेटियाँ भी जिएँ शान से
एक खुशियों का संसार दे दीजिए
काँप जाये हृदय अरि दलों का अभी
हर दिशा को वो हुंकार दे दीजिए
मोर मन के उठे झूम “प्रीतम” सभी
मेरी वाणी को झंकार दे दीजिए
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
18/09/2017