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18 Jul 2016 · 1 min read

मेरी नजर (मुक्तक)

मेरी नजर

भटक रही थी मेरी नजर जिस हमसफ़र की तलाश में
मैं जी रहा था अब तलक जिस खूब सूरत आस में
देखा तुम्हें नजरें मिली मानों प्यार मेरा मिल गया
कल तलक ब्याकुल था जो दिल अब करार मिल गया

मेरी नजर (मुक्तक)
मदन मोहन सक्सेना

Language: Hindi
285 Views
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