“मेरी डायरी से”
पगली कहती थी,
मुझे शायरी पसन्द है,
मैं भी कम्बख़्त,
कहाँ उसकी बातों में आ गया,
सोचा!
ग़र इन्हें शायरी पसन्द है तो,
शायर भी पसन्द होंगे,
बस,
यही सोचकर मैं भी शायरी करने लगा,
अफ़सोस!
उन्हे शायरी तो पसन्द आने लगी,
ख़ूब वाह-वाह करते रहे,
पर,
अब तक उन्हें शायर पसन्द नही आया।
….✍पंकज शर्मा©