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19 Jul 2017 · 1 min read

मुझे श्रेष्ठ होने का भ्रम था।

मुझे श्रेष्ठ होने का भ्रम था
ज्ञान कही कुछ कम था।
अपना देखा बेहतर माना
नही किया तुलना लोगो से।
देखा जब संसार घूमकर
पाया अपने को अंजाना।
भ्रम था पल पल जीवन में
सच को जाना न पहचाना ।
पीछे होता रहा इसी से
गर्व रहा न सच को जाना।
बेहतर सतत परिश्रम का फल है।
ठहर गये तो गिर जाओगे
सदा चले मंजिल पाओगे।
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
विप्र

Language: Hindi
2 Likes · 1105 Views
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