मुझे न गवारा कि बुजदिल कहाए
चलो अपना रास्ता स्वयं हम बनाएं
चले सही पथ पर बिना पल गंवाएं
जहां मे नही कुछ जो न मिल सके
ठोकर भी खाकर के खुशियां मनाएं
कही कुछ रुकावट तुम्हे आ मिलेगी
चलो ये रूकावट हवा मे उडाएं
बडी मौज है मुफलिसी मे जीकर देखो
कभी मक्खन सहित कभी सूखी ही खाएं
मगर स्वाभिमानी है पहचान खुद की
छोटी सी लालच मे यूं न गंवाए
बडो का कभी मित्र मुख न निहारे
समझो स्वयं को न लाचारा बनाएं
गिर गिरकर उठेगे चलते रहेगे
मुझको न गवारा कि बुजदिल कहाएं
विन्ध्यप्रकाश मिश्र नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र 9198989831