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1 Oct 2017 · 1 min read

मुक्तक

काश तुमसे चाहत को बोल पाता मैं भी!
काश गाँठें लफ्जों की खोल पाता मैं भी!
ठहरी हुई निगाहें हैं मेरी पत्थर सी,
काश तेरी बाँहों में डोल पाता मैं भी!

मुक्तककार- #मिथिलेश_राय

Language: Hindi
240 Views
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