Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 Jun 2017 · 3 min read

मुक्तक

मुक्तक
(१)”मुहब्बत”
दिखा जो चाँद नूरानी तिरे दीदार को तरसा।
सजाकर ख़्वाब आँखों में तसव्वुर यार को तरसा।
मुहब्बत ने किया घायल हुआ दिल आज पत्थर है।
किया कातिल निगाहों ने जहां में प्यार को तरसा।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

(२)समाकर रूप तन-मन में सनम तुम बाँह में आओ।
सजा कर रात वीरानी बने तुम स्वप्न मुस्काओ।
नयन से जाम छलका कर मधुर अधरों को सरसाओ।
नहीं खुशबू सुहाती है कहे रजनी चले आओ ।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

“आतप”
(३)आँचल शूल दिखाय कहे इस तप्त धरा पर नेह लुटाओ।
प्रीत बनो सुख बाँह पसारत द्वेष भुला निज ठौर बिठाओ।
कंटक सा नित रूप धरो नहि कोमल देह धरै मुसकाओ।
दादुर मोर पुकार कहे अब निष्ठुर मेघ हमें दुलराओ।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी

“ख़्वाहिश”
(४)ख़्वाहिश खुद को सनम से मिलाने की है।
अतीत की याद में गुनगुनाने की है।
एक बार फ़िर रूठने-मनाने की है।
मुहब्बत में हद से गुज़र जाने की है।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

“बेखुदी”
(५)मुहब्बत में नज़र फिसली, दिले नादान ना माना।
बसाया रूप आँखों में लुटाया प्यार दीवाना ।
निगाहें फेरकर उसने दिखाई बेरुखी अपनी।
जिऊँ कैसे बिना उसके नहीं आसां भुला पाना।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

विषय “समर्पण”
(६)चला मैं आज सजधज के तिरंगा ओढ़ के प्यारा।
किया श्रृंगार माता ने सुलाया गोद में यारा।
वतन पे जाँ फिदा कर दूँ यही ख्वाहिश सुहानी है।
समर्पण का धरम तुम भी निभाना शौक से न्यारा।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

(७)दिखाके बेरुखी चिलमन गिराके बैठे हैं ।
मिजाज़े बादलों सा रुख बनाके बैठे हैं।
बुलाऊँ पास तो कैसे बुलाऊँ यारों मैं
हिना की हसरतें पाँवों लगाके बैठे हैं।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

मुक्तक “आफ़ताब”
(८)खिलाकर आफ़ताबी मुख किया घायल हज़ारों को ।
छिपा कर रुख नकाबों में किया रुस्वा बहारों को।
तुम्हारे रूप के सदके लुटादूँ चाँद तारों को।
कहो मुमताज फिर इक ताज दे दूँ मैं नज़ारों को ।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

(९)बिखेरे रंग बारिश के, उड़ी तितली सी मैं फिरती।
अदाएँ शोख चंचल चाँद, चितवन चैन मैं हरती ।
सजन की बाँह इठला कर, महक तन मन मधुर छाई।
चुरा कर रूप फूलों से निराली प्रीत में बनती।
डॉ. रजनी अग्रवाल”वाग्देवी रत्ना”

(१०)निगाहों के झरोखे से मुहब्बत झाँक लेती है।
हँसी की आड़ में बैठी उदासी भाँप लेती है।
बहा कर आँख से आँसू समंदर खार कर डाला।
लगा हर राज़ पर पहरा पलक जब ढाँक लेती है।
डॉ.रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

(११)चली जब लेखनी मेरी, किया अल्फ़ाज़ ने घायल।
धुआँ ,स्याही बनी धड़कन हुआ जज़्बात से कायल।
नहीं समझा नमी कोई नयन को देख कर मेरे।
सुनी झंकार गैरों ने बजी जब प्रीत की पायल।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”

(१२)डुबो कर दर्द में मुझको हँसाने कौन आया है?
चुभा कर शूल आँचल में खिलाने कौन आया है?
मिले जो ज़ख़्म उल्फ़त के दिखाऊँ मैं उन्हें कैसे?
लगाने आज मरहम प्यार की फिर कौन आया है?
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना

(१३)अकेला साथ को तरसूँ नहीं खुशबू सुहाती है।
चुभाए शूल चाहत में नहीं सूरत लुभाती है।
चिढ़ाता आइना मुझको लगा कर प्रीत का सुरमा।
घुटन साँसें सहा करतीं मुहब्बत आजमाती है?
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
281 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all
You may also like:
वन्दे मातरम वन्दे मातरम
वन्दे मातरम वन्दे मातरम
Swami Ganganiya
हृदय में धड़कन सा बस जाये मित्र वही है
हृदय में धड़कन सा बस जाये मित्र वही है
Er. Sanjay Shrivastava
💐प्रेम कौतुक-409💐
💐प्रेम कौतुक-409💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
इंसान
इंसान
Vandna thakur
हाय री गरीबी कैसी मेरा घर  टूटा है
हाय री गरीबी कैसी मेरा घर टूटा है
कृष्णकांत गुर्जर
न जाने क्यों अक्सर चमकीले रैपर्स सी हुआ करती है ज़िन्दगी, मोइ
न जाने क्यों अक्सर चमकीले रैपर्स सी हुआ करती है ज़िन्दगी, मोइ
पूर्वार्थ
खून-पसीने के ईंधन से, खुद का यान चलाऊंगा,
खून-पसीने के ईंधन से, खुद का यान चलाऊंगा,
डॉ. अनिल 'अज्ञात'
उड़ते हुए आँचल से दिखती हुई तेरी कमर को छुपाना चाहता हूं
उड़ते हुए आँचल से दिखती हुई तेरी कमर को छुपाना चाहता हूं
Vishal babu (vishu)
हैं श्री राम करूणानिधान जन जन तक पहुंचे करुणाई।
हैं श्री राम करूणानिधान जन जन तक पहुंचे करुणाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
अंबेडकरवादी विचारधारा की संवाहक हैं श्याम निर्मोही जी की कविताएं - रेत पर कश्तियां (काव्य संग्रह)
अंबेडकरवादी विचारधारा की संवाहक हैं श्याम निर्मोही जी की कविताएं - रेत पर कश्तियां (काव्य संग्रह)
आर एस आघात
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
मिलने के समय अक्सर ये दुविधा होती है
Keshav kishor Kumar
शब्द यदि हर अर्थ का, पर्याय होता जायेगा
शब्द यदि हर अर्थ का, पर्याय होता जायेगा
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
अनुभव एक ताबीज है
अनुभव एक ताबीज है
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
शीर्षक - संगीत
शीर्षक - संगीत
Neeraj Agarwal
सुनो सखी !
सुनो सखी !
Manju sagar
ख़ुद लड़िए, ख़ुद जीतिए,
ख़ुद लड़िए, ख़ुद जीतिए,
*Author प्रणय प्रभात*
“अनोखी शादी” ( संस्मरण फौजी -मिथिला दर्शन )
“अनोखी शादी” ( संस्मरण फौजी -मिथिला दर्शन )
DrLakshman Jha Parimal
2493.पूर्णिका
2493.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
जिस्म से रूह को लेने,
जिस्म से रूह को लेने,
Pramila sultan
Hum tumhari giraft se khud ko azad kaise kar le,
Hum tumhari giraft se khud ko azad kaise kar le,
Sakshi Tripathi
खेल और राजनीती
खेल और राजनीती
'अशांत' शेखर
प्रभो वरदान दो हमको, हमेशा स्वस्थ रहने का (मुक्तक)
प्रभो वरदान दो हमको, हमेशा स्वस्थ रहने का (मुक्तक)
Ravi Prakash
होली
होली
Dr. Kishan Karigar
।। गिरकर उठे ।।
।। गिरकर उठे ।।
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
‘ चन्द्रशेखर आज़ाद ‘ अन्त तक आज़ाद रहे
‘ चन्द्रशेखर आज़ाद ‘ अन्त तक आज़ाद रहे
कवि रमेशराज
उतना ही उठ जाता है
उतना ही उठ जाता है
Dr fauzia Naseem shad
बात मेरी मान लो - कविता
बात मेरी मान लो - कविता
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पुलवामा अटैक
पुलवामा अटैक
लक्ष्मी सिंह
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
👨‍🎓मेरा खाली मटका माइंड
Ms.Ankit Halke jha
.......
.......
शेखर सिंह
Loading...