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2 May 2017 · 1 min read

मुक्तक

ज़ुबानी जंग नहीं अब अंदाज़ बदलना होगा

हम परिंदों को अपना परवाज़ बदलना होगा

आस्तीन के साँपों को ज़रूरी है अब कुचलना

सरहदों की खातिर हमें आवाज़ बदलना होगा
*********************************
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अमल ज़रूरी है,यलगार ज़रूरी है

गद्दारों के लिए तलवार ज़रूरी है

अमन का पैगाम देशभक्तों के नाम

दुश्मनों के लिए ललकार ज़रूरी है

Language: Hindi
332 Views
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*Author प्रणय प्रभात*
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