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19 May 2016 · 1 min read

मुक्तक

हर कली सहमी हुई, गायब हुई हैं शोखियाँ,
चल पड़ी हैं आग लेकर, जाने कैसी आँधियाँ।
ये ज़माने के बदलते आज मन्ज़र देखिये,
डर रही हैं बागबां से भी चमन में तितलियाँ।

दीपशिखा सागर-

Language: Hindi
393 Views
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