मिलने का कोई सिलसिला न हुआ
मिलने का कोई सिलसिला न हुआ
दिल ये यादों से पर रिहा न हुआ
मंज़िलों तक पहुँचते हम कैसे
साफ कोई भी रास्ता न हुआ
इसके सँग ज़िन्दगी गुज़ारी है
पर कभी वक़्त ये मेरा न हुआ
दी दलीलें बड़ी बड़ी हमने
पक्ष में फिर भी फैसला न हुआ
दूर हमको किया जमाने ने
दिल मे पर कोई फासला न हुआ
वो पकड़ते भी झूठ को कैसे
जब हकीकत से सामना न हुआ
“अर्चना’ छोड़ ही गईं खुशियां
दर्द लेकिन कभी जुदा न हुआ
डॉ अर्चना गुप्ता
03-09-2017