Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
7 Jan 2017 · 3 min read

मान

विभा के माथे पर सदैव सिंदूरी बिंदी सजी रहती थी. वह बड़े चाव से इसे लगाती थी. उसके लिए यह प्रतीक थी उसके सुखी वैवाहिक जीवन की. उसके प्रेम की और उस आपसी समझ की जो उसकी गृहस्ती का आधार थी.

यदि उसकी गृहस्ति की तुलना किसी साम्राज्य से करें तो वह उसके तख़्त पर बैठी साम्राज्ञी थी. उसी का सिक्का चलता था. उसके पति एक प्रतिष्ठित उद्योगपति थे. समाज के रसूखदार लोगों में उनका उठना बैठना था. वह भी उसे पूरा मान सम्मान देते थे. गृहस्त जीवन के तीन क्षेत्रों धर्म अर्थ एवं काम तीनों में बराबर की साझेदार थी.
उसे अपने पति पर बहुत अभिमान था. उनकी सफलता में वह स्वयं को भागीदार मानती थी. कई बिजनेस क्लांइट्स तथा अन्य रसूखदार लोगों से अच्छे संबंध बनाए रखने में उसके द्वारा आयोजित लंच तथा डिनर पार्टियों का बड़ा हाथ था. सामाजिक कार्यक्रमों में भी वह अपने पति के साथ जाती थी.

अक्सर पत्र पत्रिकाओं में उसके पति के विषय में अच्छे लेख निकलते थे. जिन्हें वह काट कर बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से सहेज कर रखती थी. उन्हें मिले सारे पुरस्कारों को भी उसने बहुत सुंदर ढंग से सजाया था.
किंतु इधर छपी कुछ खबरें उसे अच्छी नही लगीं. उसके पति का नाम किसी मशहूर नृत्यांगना से जोड़ा जा रहा था. पर उसने ध्यान नही दिया. ऐसी चटपटी खबरों से ही तो इनकी बिक्री होती है. उसने स्वयं को तसल्ली दी. लेकिन कुछ शुभचिंतकों ने भी जब दबी ज़बान उसे चेताया तो उन्हें भी उसने अपने तर्क से समझा दिया. किंतु अब तक एक छोटा सा शक का बीज उसके मन में रोपित हो गया था. कुछ और खबरों ने इसे अंकुरित कर दिया. उसके बाद उसे पेंड़ बनते देर ना लगी. अभी भी सिंदूरी बिंदी उसके माथे पर होती थी लेकिन अब वह सारे भाव नही थे जिसके कारण वह उसे लगाती थी.

हलांकि कुछ भी ठोस अभी तक उसके सामने नही आया था. जो था वह कुछ चित्र जो उस नृत्यांगना के साथ पार्टियों में लिए गए थे और लोगों की कही सुनी बातें. लेकिन शक वस्तुओं बढ़ा चढ़ा कर दिखाता है. अपने पति को रंगे हाथों पकड़ने के लिए उसने जासूसी आरंभ कर दी. एक दिन वह उनका पीछा करते हुए उस होटल में गई जहाँ उसके पति का एक कमरा सदा बुक रहता था. यहाँ वह आवश्यक किंतु वह मीटिंग करते थे जिनकी सूचना गुप्त रखना चाहते थे. उन दोनों के भीतर जाने के कुछ देर बाद ही वह भी अंदर गई. कमरे के दरवाज़े पर उसने दस्तक दी. दरवाज़ा उसके पति ने खोला. वह भीतर चली गई. किसी के कुछ कहने से पहले ही वह बिफर पड़ी “मेरे प्रेम और विश्वास की इस तरह हत्या कर रहे हैं आप.” क्रोध में उसने अपने माथे की बिंदी पोंछ दी.

घर वापस आकर वह कमरे में जाकर लेट गई. मन बहुत अशांत था. कुछ समय बाद उसके पति ने प्रवेश किया. उसने तंज़ किया “सफाई देने के लिए उसे भी साथ ले आते.” शांत भाव से उसके पति ने कहा “मन में चोर होता तो अवश्य लाता. कई दिनों से मेरे और उसके बारे में कुछ बातें हो रही थीं. मैने तुमसे यह सोंच कर कोई बात नही की कि तुम मुझ पर यकीन रखोगी. पर मुझे बात करनी चाहिए थी. मैं और तुम आखिर इंसान ही हैं. अपनी कमज़ोरियों से बंधे.” फिर कुछ रुक कर आगे बोले “कंचन मेरे एक मित्र की बहन है. वह गरीब अनाथ बच्चों के लिए काम करती है. अपनी कला के माध्यम से उनके लिए धन एकत्र करती है. हम दोनों कई दिनों से इसी उद्देश्य के लिए एक कांसर्ट करने की सोंच रहे थे. उसी सिलसिले बात करने गए थे. अब तुम पर है कि यकीन करो या ना करो.” वह कमरे के बाहर जाने लगे लेकिन कुछ सोंच कर रुक गए “आज तुमने अपने माथे की बिंदी पोंछ दी. जिसे तुम हमारे आपसी प्रेम और विश्वास के प्रतीक के तौर पर लगाती थी. मैं ऐसा कोई चिन्ह नही लगाता. लेकिन मेरा मन सदा हमारे प्रेम के सिंदूरी रंग से रंगा रहता है.” यह कहकर वह चले गए.

विभा को अब पछतावा हो रहा था. सिंदूरी रंग वह माथे पर सजाती थी. लेकिन उसका सही अर्थ तो उसके पति ने समझा था.

Language: Hindi
2 Comments · 524 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
धरा और हरियाली
धरा और हरियाली
Buddha Prakash
मै भी हूं तन्हा,तुम भी हो तन्हा
मै भी हूं तन्हा,तुम भी हो तन्हा
Ram Krishan Rastogi
*कड़वाहट केवल ज़ुबान का स्वाद ही नहीं बिगाड़ती है..... यह आव
*कड़वाहट केवल ज़ुबान का स्वाद ही नहीं बिगाड़ती है..... यह आव
Seema Verma
Phoolo ki wo shatir  kaliya
Phoolo ki wo shatir kaliya
Sakshi Tripathi
गर सीरत की चाह हो तो लाना घर रिश्ता।
गर सीरत की चाह हो तो लाना घर रिश्ता।
Taj Mohammad
कैसे पाएं पार
कैसे पाएं पार
surenderpal vaidya
मैं आखिर उदास क्यों होउँ
मैं आखिर उदास क्यों होउँ
DrLakshman Jha Parimal
तुम बदल जाओगी।
तुम बदल जाओगी।
Rj Anand Prajapati
*चुनावी कुंडलिया*
*चुनावी कुंडलिया*
Ravi Prakash
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अन्तर होता है
आमंत्रण और निमंत्रण में क्या अन्तर होता है
शेखर सिंह
*आशाओं के दीप*
*आशाओं के दीप*
Harminder Kaur
🙏 गुरु चरणों की धूल 🙏
🙏 गुरु चरणों की धूल 🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
DR. ARUN KUMAR SHASTRI
DR. ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
प्रबुद्ध प्रणेता अटल जी
प्रबुद्ध प्रणेता अटल जी
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
माँ दे - दे वरदान ।
माँ दे - दे वरदान ।
Anil Mishra Prahari
इतनी जल्दी क्यूं जाते हो,बैठो तो
इतनी जल्दी क्यूं जाते हो,बैठो तो
Shweta Soni
धानी चूनर
धानी चूनर
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
You relax on a plane, even though you don't know the pilot.
You relax on a plane, even though you don't know the pilot.
पूर्वार्थ
चाहत 'तुम्हारा' नाम है, पर तुम्हें पाने की 'तमन्ना' मुझे हो
चाहत 'तुम्हारा' नाम है, पर तुम्हें पाने की 'तमन्ना' मुझे हो
Sukoon
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
खुद के वजूद की
खुद के वजूद की
Dr fauzia Naseem shad
!!! नानी जी !!!
!!! नानी जी !!!
जगदीश लववंशी
2790. *पूर्णिका*
2790. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
*
*"बसंत पंचमी"*
Shashi kala vyas
सम्बंध बराबर या फिर
सम्बंध बराबर या फिर
*Author प्रणय प्रभात*
आश्रय
आश्रय
goutam shaw
आदमी बेकार होता जा रहा है
आदमी बेकार होता जा रहा है
हरवंश हृदय
*हिंदी की बिंदी भी रखती है गजब का दम 💪🏻*
*हिंदी की बिंदी भी रखती है गजब का दम 💪🏻*
Radhakishan R. Mundhra
कौन कहता है की ,
कौन कहता है की ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
सलाह .... लघुकथा
सलाह .... लघुकथा
sushil sarna
Loading...