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21 Jul 2017 · 1 min read

मानव ने खूब की मनमानी

मानव ने खूब की मनमानी
प्रकृति की कर दी हानि
गंदी कर दी हवा पानी
खनन किया की मनमानी
धरती अब नही रही धानी
वृक्ष काट पहुंचायी हानि
देख सूरज को गुस्सा आया
आंख लालकर क्रोध दिखाया
मानव फिर भी समझ न पाया
करदी बडी बडी नादानी
आग बरषती है अम्बर से
सूख गया है सब पानी
बाढ प्रदूषण सूखा रोग
पहुंच रही है बडी हानी
लुप्त हो रहे पशु पक्षी सब
प्रकृति से हुई छेडखानी
रही कृतिमता जीवन भर मे
करता है नित मनमानी
विन्ध्यप्रकाश मिश्र
नरई चौराहा संग्रामगढ प्रतापगढ

Language: Hindi
373 Views
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