माँ…….……
माँ……
आज फिर बच्चा बन जाने को दिल चाहता है
माँ तेरे आँचल में छिप जाने को दिल चाहता है।
है, सब कुछ आज फिर भी ग़रीब हूँ
तेरे प्यार,ममत्व का अभाव मुझे बहुत सताता है।
बहुत चाह थी कदम बाहर ले जाकर
समस्त दुनिया को देखने की माँ।
इस कांटो भरी दुनिया मे अन्धकार ही अन्धकार
छलावा ही व्याप्त नझर आता है।
थक गया इम्तहाँ देते देते,इस तपीश से
तेरे आँचल की शीतल छाया में छुप जाने को
दिल चाहता है।
ऊँगली पकड़ कर डुबाने वाले साथीे तो बहुत है
आज फिर तेरी ऊँगली पकड़ कर ज़िंदगी के सफर
मे चलने को दिल चाहता है।
अपने हाथों के छालों को देख कर तेरे
कोमल हाथों का दर्द समझ पाता हूँ मे, माँ
भूख़ा हूँ, आज भी अपने हाथ की रोटी खा कर
तेरे हाथों की बनी रोटी खा कर अपनी भूख मिटाना चाहता हूँ।
दुनिया के दिए दर्द पीड़ाओं को आज
तेरे स्नेह भरे आँचल में खुद को समा
कर दूर करना चाहता हूँ।
फिर तुम्हारा साथ पाकर
निर्भिक होकर जीना चाहता हूँ मे, माँ
फिर बच्चा बनना चाहता हूं में,माँ
तेरे प्यार भरे स्नेह ममता को पाकर
खुद को पूरा करना चाहता हूँ मे, माँ
आज तेरे बिन अधूरा हूँ मे, माँ
भूपेंद्र रावत
01।01।2017