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26 Jul 2016 · 1 min read

माँ

“माँ”

एहसास मेरा पाकर अपने भीतर
ख़ुशी से फूली न समायी
वो मेरी माँ है

आहट सुनकर मेरे आने की
थाम ली उसने सलाई
और बुनने लगी
नन्हे नन्हे दस्ताने
छोटे छोटे मोज़े
नन्ही से टोपियाँ
पिद्दी से स्वेटर

जैसे जैसे पास आया
मेरे जन्म का समय
ले कर बैठ गयी वो
अपनी सिलाई मशीन
लगी सिलने झगोले

कहाँ होते थे उस वक़्त
ये हगीज और ममी पोको पैन्ट्स
ढूंढ लिए सारे सूती कपडे घर के
और बना दिए मेरे डायपर

गर्मी हो रही है पापा परेशान हैं
उनकी सूती कमीज गायब है
माँ उनको दिखा रही है
मेरे झगोले और डायपर

समझ गए पापा भी
और मुस्कुराकर रह गए

जब जन्म पाया मैंने
बड़े जतन से माँ ने सम्हाला
कितनी ही बार बलैयाँ उतारी
सबकी बुरी नजरों से बचाकर
अपने आँचल में छुपाया

कितना सहेज कर रखा मुझे
कहीं खरोच न आ जाए मुझे
अपना वात्सल्य लुटाया
खुद गीले में सोकर
मुझे सूखे में सुलाया

हर मनुष्य पर कर्ज है
माँ के त्याग का
माँ की तपस्या का
माँ के वात्सल्य का

माँ मेरा प्रणाम है
तेरे हर बलिदान को
तेरे वात्सल्य को

बस यही दुआ है मेरी
सबके ऊपर बना रहे
साया माँ का |

“सन्दीप कुमार”

Language: Hindi
776 Views
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