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17 Oct 2017 · 1 min read

महंगाई के मार

महंगाई के मार……….
(भोजपुरी कविता)………
ऐह दीवाली सगरे हमें अंहार दिखेला।
महंगाई के मार महंग समान मिलेला।।
सबका हमसे रहला हरदम बहुते आशा
लाख जतन करके भी हमरा मिलल निराशा
नोकरी के चक्कर में पग चप्पल घीस जाला
ऐतनो पर ना कबहूँ कवनों काम भेटाला
मनवा भईल निराश ना कवनों आश दिखेला।
महंगाई के मार महंग समान मिलेला।।

घरवा हमरे अईहे सगरो संगी-साथी
लेअईहें उपहार ऊ संगे नाना भाती
हम उनका का देहब अऊर हम का खाईं
बात ईहे अब स़ोंच-सोच के हम मर जाईं
ना बा घर में ढेबुआ ना आनाज दिखेला।
मंगाई के मार महंग सामान मिलेला।।

धीया माई हमरा देखे एकटक ऐईसे
चाँद अन्धरीया बाद दिखेला दूज के जईसे
जामा नवका चाहीं केहुके केहूके साड़ी
छोटका बबूआ मांगेला खेलवना गाड़ी
हम कहवाँ देखीं सगरो अंहार दिखेला।
महंगाई के मार महंग सामान मिलेला।।

गरीब भईल ह पाप बात ई हमें बुझाता
बीन पईसा ना तीज त्यौहार हमें सुहाता
लक्ष्मी पूजन में भी लक्ष्मी बड़ी जरूरी
दीवाली में लक्ष्मी पूजन बा मजबूरी
पूजन करीं कईसे ना कवनों राह दिखेला
महंगाई के मार महंग सामान मिलेला।।

महंगाई पर बात बहुत ही भईल ए भाई
कबसे सुननी हमके कुछो आपन सुनाईं
कहै “सचिन” कविराय अब त खुश हो जाईं
दीवाली छठ के बा परिवार सहित बधाई
रऊऐ सब के खुशी में हमरा खुशी मिलेला।
महंगाई के मार महंग समान मिलेला।।
स्वरचित………
………….पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
17/10/2017

Language: Hindi
639 Views
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