Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Apr 2017 · 3 min read

मस्ती का त्योहार है होली

होली शरारत, नटखटपन, मनोविनोद, व्यंग्य-व्यंजना, हँसी-ठठ्ठा, मजाक-ठिठोली, अबीर, रंग, रोली से भरा हुआ एक ऐसा त्योहार है जो रंगों की बौछार के मध्य अद्भुत आनंद प्रदान करता है। कुमकुम और गुलाल से रंगे हुए गाल गवाही देते हैं कि हर तरफ मस्ती ही मस्ती है। बूढ़े या जवान सबके अधरों पर बस एक ही तान-‘होली है भई होली है।’
इस त्योहार से पन्द्रह दिन पूर्व और पन्द्रह दिन बाद तक हर कोई अद्भुत आनंद से भरा हुआ बस एक ही टेर लगाता है-‘होली खेल री गुजरिया, डालूँ में रंग या ही ठाँव री!’
होली खेलने वाली हुरियारिन होली खेलते हुए मादक चितवन के वाणों के प्रहार सहते हुए कहती है-‘मति मारै दृगन के तीर, होरी में मेरे लगि जायेगी।’
होली पर इतनी मस्ती क्यों छाती है? इसका सीधा-सीधा सम्बन्ध शीतलहर की ठिठुरन के बाद रोम-रोम को गुनगुनी सिहरन प्रदान करने वाले बदले हुए मौसम से होने के साथ-साथ किसान की पकी हुई फसल से भी है।
इस पर्व का प्राचीन नाम ‘वांसती नव सस्येष्टि है अर्थात् वसंत ऋतु के नये अनाज से किया हुआ यज्ञ। तिनके की अग्नि में भुने हुए [अधपके ] शमोधान्य [ फली वाले अन्न ] को होलक कहते हैं। होली होलक का अपभ्रंश हैं।
पौराणिक मतानुसार होलिका हरिणकश्यपु नामक दैत्य की बहन थी। उसे वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। हरिणकश्यपु का एक पुत्र प्रहलाद विष्णु का उपासक था। प्रहलाद कहता था – ‘कथं पाखण्ड माश्रित्य पूजयामि च शंकरम।’ अर्थात् मैं पाखण्ड का सहारा लेकर शंकर की पूजा क्यों करूँ ? मैं तो विष्णु की पूजा करूँगा।’’
हरिणकश्यपु ने प्रहलाद की इस विष्णु-भक्ति से कुपित होकर एक दिन अपनी बहिन होलिका से प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठने को कहा। होलिका ने ऐसा ही किया। विष्णु की कृपा से होलिका तो अग्नि में जलकर भस्म हो गयी किन्तु प्रहलाद बच गया।
उक्त पौराणिक कथा से इतर यदि हम इस त्योहार के प्रचलन पर विचार करें तो किसी भी प्रकार के अन्न की ऊपरी परत को होलिका कहा जाता है और उसी अन्न की भीतरी परत [ गिद्दी ] को प्रहलाद बोलते हैं | होलिका को माता इसलिए माना जाता है क्योंकि वह इसी गिद्दी [ गूदा ] की रक्षा करती है। यदि यह परत न हो तो चना, मटर, जौ आदि का विकास नहीं हो सकता। जब हम गेंहूँ-जौ आदि को भूनते हैं तो उसके ऊपर की परत अर्थात् होलिका जल जाती है और गिद्दी अर्थात् प्रहलाद बचा रहता है। अधजले अन्न को होलिका कहा जाता है। सम्भवतः इसी कारण इस पर्व का नाम होलिकोत्सव है।
होलिकोत्सव फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। होली वाले दिन घर-घर भैंरोजी और हनुमान की पूजा होती है। पकवान, मिष्ठान, नमकीन सेब, गुजिया, पड़ाके, टिकिया आदि स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किये जाते हैं। छोटी होली वाले दिन शाम को घर में तथा सार्वजनिक स्थल पर रखी होली की पूजा सूत पिरोकर और फेरे लगाकर की जाती है। रात्रि बेला में होली में आग लगाकर लोग कच्ची गेंहूँ और जौ की बालियाँ भूनते हैं और भुनी हुई बालियों को एक दूसरे को भेंट कर गले मिलते हैं। ज्यों-ज्यों रात्रि ढलती है और बाद में सूरज अपनी गर्मी बिखेरता है, यह सारा मिलने-मिलाने का कार्यक्रम एक-दूसरे को रंगों से सराबोर करने में तब्दील हो जाता है। पुरुष, नारियों पर पिचकारियों और बाल्टियों से रंग उलीचते हैं, नारियाँ पुरुषों पर डंडों की बौछार करती हैं। होली का पर्व हर हृदय पर प्यार की बौछार करता है। यह त्योहार वर्ण-जाति, ऊंच-नीच के भेद मिटाने वाला ऐसा पर्व है जिसमें हर कोई भाईचारे एवं आपसी प्रेम से आद्र होता है।
———————————————————
सम्पर्क-15/109, ईसानगर, अलीगढ़

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 269 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुक़द्दस पाक यह जामा,
मुक़द्दस पाक यह जामा,
Satish Srijan
तेवरी
तेवरी
कवि रमेशराज
नव वर्ष का आगाज़
नव वर्ष का आगाज़
Vandna Thakur
कह दो ना उस मौत से अपने घर चली जाये,
कह दो ना उस मौत से अपने घर चली जाये,
Sarita Pandey
रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
रखे हों पास में लड्डू, न ललचाए मगर रसना।
डॉ.सीमा अग्रवाल
2954.*पूर्णिका*
2954.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Feel of love
Feel of love
Shutisha Rajput
भांथी के विलुप्ति के कगार पर होने के बहाने / मुसाफ़िर बैठा
भांथी के विलुप्ति के कगार पर होने के बहाने / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
प्यारी मां
प्यारी मां
Mukesh Kumar Sonkar
राज नहीं राजनीति हो अपना 🇮🇳
राज नहीं राजनीति हो अपना 🇮🇳
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
घर की रानी
घर की रानी
Kanchan Khanna
**कुछ तो कहो**
**कुछ तो कहो**
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
// प्रसन्नता //
// प्रसन्नता //
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
सिर्फ तेरे चरणों में सर झुकाते हैं मुरलीधर,
सिर्फ तेरे चरणों में सर झुकाते हैं मुरलीधर,
कार्तिक नितिन शर्मा
*नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है (गीत)*
*नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है (गीत)*
Ravi Prakash
शिलालेख पर लिख दिए, हमने भी कुछ नाम।
शिलालेख पर लिख दिए, हमने भी कुछ नाम।
Suryakant Dwivedi
बुद्ध
बुद्ध
Bodhisatva kastooriya
मान भी जाओ
मान भी जाओ
Mahesh Tiwari 'Ayan'
एक अलग सी चमक है उसके मुखड़े में,
एक अलग सी चमक है उसके मुखड़े में,
manjula chauhan
जनगणना मे मैथिली / Maithili in Population Census / जय मैथिली
जनगणना मे मैथिली / Maithili in Population Census / जय मैथिली
Binit Thakur (विनीत ठाकुर)
■ समय की बात....
■ समय की बात....
*Author प्रणय प्रभात*
तुम याद आ रहे हो।
तुम याद आ रहे हो।
Taj Mohammad
#पंचैती
#पंचैती
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
हमें लिखनी थी एक कविता
हमें लिखनी थी एक कविता
shabina. Naaz
ज़िंदगी थी कहां
ज़िंदगी थी कहां
Dr fauzia Naseem shad
विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
हिन्दी दोहा - दया
हिन्दी दोहा - दया
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
खिलाडी श्री
खिलाडी श्री
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
“ धार्मिक असहिष्णुता ”
“ धार्मिक असहिष्णुता ”
DrLakshman Jha Parimal
Mere shaksiyat  ki kitab se ab ,
Mere shaksiyat ki kitab se ab ,
Sakshi Tripathi
Loading...