मरमरी बदन तेरा धूप में न जल जाए
गैर तरही
ग़ज़ल
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212 1222 212 1222
नाज़ हुस्न पे मत कर एक दिन ये ढल जाए
आने-जाने वाला रुत पल में ही बदल जाए
आ छुपा लूँ मैं तुमको अपने इन पनाहों में
मरमरी बदन तेरा धूप में न जल जाए
इस तरह से मत सँवरो आइने के आगे तुम
रूप देख के तेरा वो न फिर मचल जाए
शोख़ियाँ हैं आँखों में और अदाएँ भीक़ातिल
देख के फ़रिश्तों का तुझपे दिल फिसल जाए
फूल सा बदन तेरा कलियों की हँसी तेरी
देखे तू जिसे हँस के उसकी जाँ निकल जाए
क्या बिसात है मेरी इश्क़ में तेरे दिलबर
ये शबाब पा कर के संग दिल पिघल जाए
बेक़रारी ये कैसी छा रही हमें “प्रीतम”
दे सहारा बाँहों का दिल मेरा सँभल जाए
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)