मरकर भी सह रही गरीबी
देख दुर्दशा दीन दुखी की
जिसने जीवन साथी खोया
शायद ही अन्तिम साथी था
चार कांध भी न पाया
शर्मसार मानवता हो गयी
ईश्वर ने यह दुख ढाया
साथी था पति सात जन्म का
दुख का सागर भर आया
कंधा पाकर स्वयं पती का
मरकर भी सह रही गरीबी
कैसे गुजर करेगे आगे सोच
सोच मन घबराया
द्रवित हृदय से
विन्ध्यप्रकाश मिश्र