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28 Jan 2017 · 1 min read

मन की उलझन

मन की उलझन ऐसी है,
उलझी रस्सी जैसी है।
मन की उलझन कभी ना सुलझे,
जीतना सुलझे उतना उलझे।

तन और मन के बीच,
जब ताल-मेल बिठ नहीं पाता।
तो पैदा होती है उलझन

उलझन को जितना सुलझाओ,
उतनी ही उलझती जाये।
अगर हो उलझन को सुलझाना,
तो तन की सोचों
ना मन की सोचों,
किस्मत पे छोड़ो।

नाम-ममता रानी,राधानगर(बाँका),बिहार

Language: Hindi
1502 Views
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