****.भेद भाव.****
कही आरक्षण कही भेद भाव
कब तक यूं ही हमें बाटोगे,
इस गंधयुक्त हथियारों से
आखिर कब तक हमें काटोगे?
हे भ्रष्टाचार के अनुयायी
बतला आखिर तेरी मंशा क्या,
इस भारत भू के बेटों को
ऐसे कब तक तुम बाटोगे?
हम आपस में ही लड़ते है
और तुम हमको लड़वाते हो
जो जख्म तुम्हीं ने दिया हमें
आकर उसको सहलाते हो।
तुम स्वार्थ सिद्धि के खातिर ही
अपना रोटी हो सेक रहे
और वर्ग-भेद की बर्छी को
हर दिन हो हम पर फेक रहे।
ये गोरखधंधे काला धन
सबही तो तेरी माया है
इस राष्ट्र की गरीमा को खण्डित
कर-कर के तुमने खाया है।
इस शीशमहल पर बतलादो
कबतक पैबन्द टाट का साटोगे
इस गंधयुक्त हथियारों से
आखिर कब तक हमें बाटोगे।
यह राम कृष्ण की धरती है
यहाँ भेद भाव का नाम न था
जहाँ रावण कंस का बध हुआ
वहाँ तुम जैसों का काम ही क्या?
जिस दिन जनता यह समझ गई
तुम थुक थुक के चाटोगे
दुर्भाग्य को अपने कोसोगे
सर पीट – पीट कर भागोगे।
©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
9560335952
5/5/2017