भुला दो
बहुत चाह हैं, भुला दो.
मेरे दिल को तुम दुःखा दो.
मेरे एतबार की मचलता हुई एहसास हो.
मुझे तुम यूँही भुला दो.
ये दिल है, ना कोई जिरह की दुकान कमसिन.
मेरी तमन्ना की हसरतो को तुम निखार दो.
मोहब्बत कोई ऐब नहीं नाजिर .
मुझे तुम यूँही भुला दो.
सोचते होंगे क्यों लिखता मेरे नाम को कागजो पर बार- बार.
मेरी मोहब्बत सुलगती हुई फरमान हैं.
निकल गये ये साल फिर इंतजार में.
मुझे तुम यूँही भुला दो.
अवधेश कुमार राय “अवध”