Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Jan 2017 · 7 min read

भारतीय समाज पर नोटबंदी का प्रभाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत् 8 नवंबर को सायंकाल भारत की सबसे बडी मुद्रा के रूप में प्रचललत एक हजार तथा पांच सौ रुपये के करंसी नोट को बंद ककए जाने की अचानक घोषणा कर दी लजससे देश की आवाम स्तब्ध रह गयी | इस बात की संभावना पछली यूपीए सरकार के शासनकाल से बनी हुई थी, परन्तु एक अथथशास्त्री के रूप में पूवथ प्रधानमंत्री डा० मनमोहन ससह न े इस फैसले के दरूगामी पररणामों को भांप लया होगा और यह फैसला ना लेने में समझदारी समझी |परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह फैसला लेने में कोई लचककचाहट नहीं दखाई | उनके कसी मंलत्रमंडल सहयोगी या सलाहकार ने उन्हें ये सुझाव ना देते हुए उनके इस फैसले का समथथन ककया | अचानक ललए जाने वाले इस फैसले के पररणामस्वरूप दशे की आम जनता,मजदरू व गरीब वगथ के लोग,छोटे व मंझले व्यापारी यहां तक कक स्वयं बैंक कमथचारी भी ककतने बडे संकट में पड सकते हैं? और इस फैसले का पररणाम आज देश की जनता को ककस रूप में भुगतना पड रहा है यह पूरा देश देख रहा है। लजस तरह का माहौल देश में बना हुआ है जो अफरा तफरी चल रही है उससे बडी आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता
है कक सरकार ने यह कदम जल्दबाजी में लबना ककसी प्रकार की तयारी में उठाया है | हमारे लवत्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है की हमारे बैंक करंसी से भरे पडे हैं पर सारी जनता जानती है कक उनको ककस परेशानी के दौर से गुजरना पड रहा है | लोग अपने ही द्वारा जमा ककया हुआ धन नही लनकल सकते | सरकार द्वारा रूपये लनकलने की दर पर एक लनलित सीमा लगा दी गयी है | कभी 2000 रूपये तो कभी 4500 रूपये | बेंकों में जाए तो वहां धन नही लमलता | बेंक कमथचाररयों द्वारा कैश न होने का दावा ककया जाता है तो अगर आप ए.टी.एम में जाए तो नो कैश का बोडथ ललखा हुआ पाया जाता है | लोग जाए तो जाए कहााँ | अपनी जरूरते को कैसे पूरा करे | घर में खाना कहााँ से उपलब्ध करे? जनता अपनी रोजमरा की जरूरते पूरी करे तो कैसे? इस प्रकार के तयारी करके प्रधानमंत्री जी ने यह कदम उठाया था लजससे यह हाहाकार मचा हुआ है | लजस प्रकार की अफरा तफरी का माहौल देश में बना हुआ उससे साफ़ तौर से जालहर होता है कक यह कदम जल्दबाजी और लबना ककसी तयारी के उठाया गया है |

देश में भ्रष्टाचारी समाप्त हो, काला धन जो कुछ लोगो द्वारा लवदेशों में जमा ककया हुआ है या उनके पास यहााँ भारत में भी हो, धन की जमाखोरी बंद हो, ररश्वत लेने वाले या देने वालो पे लशकंजा कसा जाए, टैक्स चोरी करने वालो पर नकेल डाली जाए, ये तो हर कोई चाहता है | उन्ही लोगो पर लनयंत्रण हेतु प्रधानमंत्री जी द्वारा ये कदम उठाया गया | पर क्या यह सब ककसी प्रकार से भी हो पाया या होता नजर आ रहा है? परन्तु इस प्रकार कुछ हजार या कुछ लाख लोगो को
सुधारने या उन्हें सबक लसखाने हेतु देश की सवा अरब जनता को भूखे प्यासे कई-कई कदन लम्बी कतारों में खडा रहने को मजबूर ककया जाए? गत 9 नबम्बर स े लेकर अब तक दशे की जनता चाह े वह बजुगथ, जवान, औरते, असहाय वर्द् थ पुरे दशे के बेंकों, डाकघरों में इस प्रकार से लम्बी-लम्बी कतारों में खडे हैं अपने रोजमरा के कायथ छोड कर | माध्यम वगथ या गरीब वगथ की जनता ने लजतना धोडा बहुत धन अपनी मेहनत से जोड कर घर में रखा भी था जो उनके बुरे हालात या शादी ब्याह में काम आये, वह भी बेंकों में जमा कराने हेतु कदन रात कतारों में खडा रहना पडा | इसका सीधा असर उद्योग जगत, थोक एव ं खुदरा व्यवसाय,दकु ानदारों,शोरूम,सरकारी व गैर सरकारी कायाथलय सभी पर पडता देखा जा रहा ह।ै देश की व्यवस्था को संचाललत करने वाला परंतु दभु ाथग्यवश जमाखोरी व कालेधन जैसी बदनामी का टोकरा भी अपन े लसर पर ढोने वाला व्यापारी वगथ भी इस समय इस कद्र परेशान है जैसा पहले कभी नहीं देखा गया।
देश की पूवथ प्रधानमंत्री इंकदरा गांधी ने भी 1969 में देश के चौदह प्रमुख लनजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत ककए जाने की घोषणा की थी। उसके पिात 1980 में 6 और दसू रे बैंकों का राष्ट्रीयकरण ककया गया। उस समय यह कदम उठाने की जरूरत इसललए महसूस की गई थी कक लनजी बैंक लजनके माध्यम से देश का 70 प्रलतशत आर्थथक लेनदेन व जमा खाता संचाललत हो रहा था वे आम लोगों को आर्थथक रूप से आत्मलनभथर बनाने हेतु कजथ उपलब्ध कराने का काम तेजी से नहीं
कर रहे थे। इन सुलवधायों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंकदरा गााँधी ने यह कदम उठाया था | परन्तु इस फैसले का असर देश की जनता में ककसी नकरात्मक रूप या भयानक रूप में नही हुआ| पर आज देश की जनता जैसे लम्बी कतारों में खडी है और इतनी परेशालनयों का सामना कर रही है उस लहसाब से तो वही काले धन के दोषी हुए | गरीब, मजदरू , कदहाडीदार, ररक्शाचालक, मध्यम वगथ के व्यापारी, कुछ नौकरी करन े वाले क्या इनके पास जमा ह ै काला धन? लम्बी लम्बी कतारों में यही लोग आपको खडे कदखाई देंगे लजन्होंने पाई-पायी जोड कर अपनी बेटी की शादी या एक छोटा सा घर बनाने के ललए ये धन जोडा, आज वही सारी जनता सडकों पर कतारों में लगी हुई है और सवंयम को काले धन का सबसे बडा मुजररम समझने को मजबूर है | इस बात की तो देशवालसयों ने कभी कल्पना भी नही की होगी कक कतारों में इस प्रकार से खडे होकर वह अपने ककसी लप्रयजन को हमेशा के ललए खो सकते है. प्राप्त समाचारों के अनुसार अब तक लगभग 70 लोग कतार में खडे होने के कारण होने वाली तकलीफ व् परेशालनयों से तंग आकर अपनी जान गवां चुके है | इस नोटबंदी के समय में जो लोग अपनी जान गवां चुके है इन सब में उनका क्या कसूर था? यह लोग कतारों में खडे है इन लोगो ने ना तो कला धन जमा ककया था और ना हे ककसी प्रकार का टैक्स चोरी ककया था तो इनको क्यों इस प्रकार से नोटबंदी की बलल चडना पडा. क्या सरकार का इनकी तरफ कोई ध्यान नही कोई लजम्मेवारी नही? जनता पहले अपने ही धन को पहले कतारों में खडे हो कर धन को जमा करवाती रही कफर लनकलवाने के ललए भी कतारों में खडना पडा| पांच सौ का और एक हजार का नोट बंद करके नई करंसी में दो हजार का नोट शालमल ककया गया है | दो हजार के नोट से कैसे ररश्वतखोरी, जमाखोरी बंद होगी? जो लोग पहले पांच सौ या एक हजार की करंसी ररश्वतखोरी या जमाखोरी क ललए इस्तेमाल करते थे उनके ललए तो सुलवधा हो गयी, अब उनका काम आधे से ही हो जायेगा | उनको जमाखोरी में दो हजार के नोट से सहूलत लमल गयी | आम जनता के ललए यह एक मुलककल का सबब बन गया |

सवभालवक रूप से आम आदमी दो हजार का नोट रखना भी नही चाह रहा | दो हजार के नोट के छुट्टे भी नही लमलते,लजससे काम रुक जाता है | देश के आधे से ज्यादा ऐ.टी.एम या तो काम नही कर रहे या कफर सौ और पचास के नोट लजन ऐ.टी.एम पर लमल भी रहे है उन पर बहुत ही लम्बी कतारें है | अब प्रश्न यह उठता है कक क्या उद्योगपलत, करोडपलत, उच्च व्यवसायी को कतारों में खडे हुए देखा गया? क्या सारा कला धन मजदरू ों,कदहाडीदारों,माध्यमवगीय
दकु ानदारों,सब्जीवालो, के पास ह?ै दशे की जनता इन कतारों में खडी हो कर अपनी देशभलि सालबत करती रह े और समस्याओं से जूझती रहे और ये मंत्री, नेता आकद सब पूरी सुख सहुल्तों से सलित जीवन का आनंद उठाए | सरकारी नेतायों, मंलत्रयों को इस नोटबंदी से कोई नुक्सान नही हुआ नुक्सान, परेशानी, और मुलककल हालातों का सामना एक आम नागररक कर रहा है |

प्रधानमंत्री जी द्वारा तकथ कदया गया था कक नोटबंदी सरहदों पर सैलनकों की रक्षा हेतु ये कदम उठाये जाने वालो कारणों में से एक था | पर यह कहााँ तक सफल हो पाया है? आज भी असला बारूद देश के सैलनकों को मारने हेतु इस करंसी से ख़रीदा जा रहा है | आंतकवाकदयों के पास यह नई करंसी कहााँ से आई? इसका मतलब कोई आंतररक लसस्टम में ही कमी है या कोई लमला हुआ है, इन सबसे यही अंदाजा लगाया जा सकता है | काले धन पर नकेल डालने के नाम पर ये नोटबंदी का जुमला प्रधानमंत्री द्वारा इस्तेमाल ककया गया |और यकद वास्तव में ऐसा है तो सरकार तथा भाजपा को देश को यह बताना चालहए कक उनकी पाटी के कनाथट्क के पूवथ मंत्री ने लपछले कदनों अपनी बेटी की शादी में जो लगभग पांच सौ करोड रुपये खचथ ककए वह धनरालश ककस करंसी में दी गई? जालहर है यकद पुरानी एक हजार व पांच सौ की करंसी में शादी का खचथ उठाया गया तो यह काला धन नहीं तो और क्या था? और यकद नई करंसी को खचथ कर यह शादी की गई तो जब देश की आम जनता को दो व चार हजार रुपये उपलब्ध कराए जा रहे हैं ऐसे में मंत्री जी को लगभग पांच सौ करोड रुपये कहां से हालसल हुए? गौरतलब है कक यह मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते तीन वषथ जेल में भी रह चुके हैं और गत् वषथ ही वे जमानत पर ररहा हुए हैं। जेल से आते ही
उन्होंने इस वषथ नोटबंदी की घोषणा के बाद अपनी बेटी की शादी पर इतनी धन-संपलत्त खचथ कर पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्थषत ककया है। इसी प्रकार भाजपा को इस बात का स्पष्टीकरण भी देना चालहए कक भाजपा की पलिम बंगाल इकाई ने प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा तथा 8 नवंबर से केवल दो कदन पहले ही चार करोड रुपये बैंक में आलखर ककन पररलस्थलतयों में जमा करवाए? इस प्रकार के समाचार और भी कई जगहों से प्राप्त हो रहे हैं। वैसे भी आज देश के ककसी भी बैंक में कोई भी बडा उद्योगपलत,व्यवसायी,राजनेता या बडा अलधकारी कतार में खडे होकर अपनी करेंसी जमा करता या नोटों की अदला-बदली करता हुआ कदखाई नहीं दे रहा है। ऐेसे में यह कहना गलत नहीं होगा कक नोटबंदी का मोदी फरमान भ्रष्टाचार लवरोधी कम जबकक जनलवरोधी ज़्यादा कदखाई दे रहा है।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 1134 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
बुद्ध वचन सुन लो
बुद्ध वचन सुन लो
Buddha Prakash
Maine apne samaj me aurto ko tutate dekha hai,
Maine apne samaj me aurto ko tutate dekha hai,
Sakshi Tripathi
किसको दोष दें ?
किसको दोष दें ?
Shyam Sundar Subramanian
बढ़ती इच्छाएं ही फिजूल खर्च को जन्म देती है।
बढ़ती इच्छाएं ही फिजूल खर्च को जन्म देती है।
Rj Anand Prajapati
औरत की नजर
औरत की नजर
Annu Gurjar
कर ले प्यार हरि से
कर ले प्यार हरि से
Satish Srijan
मसला
मसला
Dr. Kishan tandon kranti
सुकून ए दिल का वह मंज़र नहीं होने देते। जिसकी ख्वाहिश है, मयस्सर नहीं होने देते।।
सुकून ए दिल का वह मंज़र नहीं होने देते। जिसकी ख्वाहिश है, मयस्सर नहीं होने देते।।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
"वंशवाद की अमरबेल" का
*Author प्रणय प्रभात*
जनता की कमाई गाढी
जनता की कमाई गाढी
Bodhisatva kastooriya
तुम्ही हो किरण मेरी सुबह की
तुम्ही हो किरण मेरी सुबह की
gurudeenverma198
इस सियासत का ज्ञान कैसा है,
इस सियासत का ज्ञान कैसा है,
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रमेशराज के 2 मुक्तक
रमेशराज के 2 मुक्तक
कवि रमेशराज
*पुस्तक समीक्षा*
*पुस्तक समीक्षा*
Ravi Prakash
हे भगवान तुम इन औरतों को  ना जाने किस मिट्टी का बनाया है,
हे भगवान तुम इन औरतों को ना जाने किस मिट्टी का बनाया है,
Dr. Man Mohan Krishna
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
अब बस बहुत हुआ हमारा इम्तिहान
ruby kumari
रिसाइकल्ड रिश्ता - नया लेबल
रिसाइकल्ड रिश्ता - नया लेबल
Atul "Krishn"
कब तक अंधेरा रहेगा
कब तक अंधेरा रहेगा
Vaishaligoel
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
शहीद की पत्नी
शहीद की पत्नी
नन्दलाल सुथार "राही"
अपनों की भीड़ में भी
अपनों की भीड़ में भी
Dr fauzia Naseem shad
बाजार  में हिला नहीं
बाजार में हिला नहीं
AJAY AMITABH SUMAN
आखिरी ख्वाहिश
आखिरी ख्वाहिश
Surinder blackpen
महिला दिवस विशेष दोहे
महिला दिवस विशेष दोहे
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
तुम्हें कब ग़ैर समझा है,
तुम्हें कब ग़ैर समझा है,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
* ज्योति जगानी है *
* ज्योति जगानी है *
surenderpal vaidya
परिवार
परिवार
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
23/95.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/95.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
अपनी इस तक़दीर पर हरपल भरोसा न करो ।
अपनी इस तक़दीर पर हरपल भरोसा न करो ।
Phool gufran
मां ने जब से लिख दिया, जीवन पथ का गीत।
मां ने जब से लिख दिया, जीवन पथ का गीत।
Suryakant Dwivedi
Loading...