Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Nov 2016 · 3 min read

ब्रज के एक सशक्त हस्ताक्षर लोककवि रामचरन गुप्त +प्रोफेसर अशोक द्विवेदी

हमारे देश में हजारों ऐसे लोककवि हैं, जो सच्चे अर्थों में जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे न केवल स्वयं, बल्कि अपनी रचनाओं के साथ गुमनामी के अंधेरे में गुम हो जाते हैं। आभिजात्यवर्गीय-साहित्य उनकी रचनाओं को और उनको महत्व देने में संभवतः इसी कारण डरता है कि कहीं ऐसे कवियों की रचनाधर्मिता के आगे उनके भव्य शब्द-विधा न कहीं फीके न पड़ जाएं। हिन्दी-क्षेत्र के ही इन्हीं हजारों कवियों में से एक नाम स्व. रामचरन गुप्त का रहा है।
पाठ्य-पुस्तकीय साहित्य से अलग कवि गुप्त की कविता में एक सच्चे देश-प्रेमी, एक सच्चे लोकमन की छटा देखी जा सकती है। कवि अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है। पोथियों से उसका सरोकार केवल जीवन के प्रश्नों को समझने और सुलझाने के क्रम में रहा है। उसके गीत शब्द-शास्त्राीय स्वरूप ग्रहण नहीं कर सके हैं। अलंकार और छंद विधान को कविता की कसौटी मानने वालों को उनकी कविताएं पढ़कर तुष्टि भले ही न मिले, किन्तु अपने देश, देश पर मर मिटने वाले वीर जवानों और अपने ईश्वर के प्रति उनके अनुराग में कोई खोट निकाल पाना संभवतः उनके लिए भी दुष्कर होगा।
स्व. रामचरन गुप्त का जीवन हमारे देश के उस समय का साक्षी रहा है, जिसने अंग्रेजों की गुलामी और स्वतंत्राता के पश्चात् देशी सामंतों-साहूकारों की गुलामी दोनों को झेला है। अंग्रेजों की गुलामी को झेलते हुए कवि ने अपने जीवन के सुनहरे क्षणों-युवावस्था को गरीबी और अभावों से काटा। कवि के जीवन में ऐसा भी समय आया जब एक दिन की मजदूरी न करने का मतलब घर में एक दिन का पफाका था।
कवि ने अपने दुर्दिनों को ईश्वर की उस प्रार्थना में उतारा जो केवल कवि की प्रार्थना नहीं बल्कि दुख-दर्द से पीडि़त उस युग की प्रार्थना थी, जब हर लोक-मन यही पुकारता था-
‘‘नैया कर देउ पार हमारी
——–
विलख रहे पुरवासी ऐसे-
चैखन दूध मात सुरभी कौ
विलखत बछरा भोर।
‘देशभक्ति में दीवाना’ लोककवि रामचरन गुप्त सीमा पार दुश्मनों को कभी तलवार बनकर, कभी यमदूत बनकर तो कभी भारी चट्टान बनकर चुनौती देता है। गोरों को भगाने के लिए, आज़ादी को बुलाने के लिए, वह शमशीर खींचकर खून की होली खेलने के लिए जनता का आव्हान करता है-
‘‘तुम जगौ हिंद के वीर, समय आजादी कौ आयौ।
होली खूं से खेलौ भइया, बनि क्रान्ति-इतिहास-रचइया,
बदलौ भारत की तकदीर, समय आज़ादी कौ आयौ।
गोरे देश को लूटते हैं, तो कवि कहता है-‘‘ सावन मांगै खूँ अंग्रेज कौ जी’’। आजादी के बाद जब देशी पूँजीपति, राजनेता बदनाम होते हैं तो कवि उनकी अमेरिकी सांठ-गांठ की भर्त्सना करता है। जब मंहगाई आती है तो कवि को एक-एक रोटी को तरसती जनता अभी भी परतंत्र नजर आती है। कवि भूख को समझता है, इसलिए भूखों की आवाज़ बनकर अपने गीतों में प्रस्तुत होता है। ये गीत न केवल भावप्रवण हैं बल्कि उस मानवीय चिन्ता को भी प्रकट करते हैं जो इस युग की सबसे बड़ी चिन्ता है।

आम जनता का जीवन जीने वाले स्व. रामचरन गुप्त अपने जीवन संघर्षों, लोकगीतों की मिठास से युक्त भजनों और देशभक्ति पूर्ण कविताओं के चलते निश्चित ही एक सफल लोककवि कहे जाने के पात्र हैं। ब्रजभाषा की लोककवियों तथा लोकगायकों की परम्परा में वे अमिट रहेंगे, ऐसा विश्वास है।

Language: Hindi
Tag: लेख
395 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
नई शुरुआत
नई शुरुआत
Neeraj Agarwal
सागर ने भी नदी को बुलाया
सागर ने भी नदी को बुलाया
Anil Mishra Prahari
विपत्ति आपके कमजोर होने का इंतजार करती है।
विपत्ति आपके कमजोर होने का इंतजार करती है।
Paras Nath Jha
🌹 वधु बनके🌹
🌹 वधु बनके🌹
सुरेश अजगल्ले 'इन्द्र '
हनुमान जयंती
हनुमान जयंती
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
आरुष का गिटार
आरुष का गिटार
shivanshi2011
अनुभव एक ताबीज है
अनुभव एक ताबीज है
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
"उम्र जब अल्हड़ थी तब
*Author प्रणय प्रभात*
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
नज़ाकत को शराफ़त से हरा दो तो तुम्हें जानें
आर.एस. 'प्रीतम'
नदी की बूंद
नदी की बूंद
Sanjay ' शून्य'
दिवाली त्योहार का महत्व
दिवाली त्योहार का महत्व
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
23/133.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/133.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
साहब कहता वेट घटाओ
साहब कहता वेट घटाओ
Satish Srijan
कुछ परछाईयाँ चेहरों से, ज़्यादा डरावनी होती हैं।
कुछ परछाईयाँ चेहरों से, ज़्यादा डरावनी होती हैं।
Manisha Manjari
💐प्रेम कौतुक-469💐
💐प्रेम कौतुक-469💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बेटी एक स्वर्ग परी सी
बेटी एक स्वर्ग परी सी
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
गीत
गीत
Mahendra Narayan
मेरा जीने का तरीका
मेरा जीने का तरीका
पूर्वार्थ
Forget and Forgive Solve Many Problems
Forget and Forgive Solve Many Problems
PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
जिंदगी झंड है,
जिंदगी झंड है,
कार्तिक नितिन शर्मा
जीत मनु-विधान की / MUSAFIR BAITHA
जीत मनु-विधान की / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
*पाए कर्जे में पड़े, धन्नासेठ अपार (कुंडलिया)*
*पाए कर्जे में पड़े, धन्नासेठ अपार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
राधा कृष्ण होली भजन
राधा कृष्ण होली भजन
Khaimsingh Saini
सुविचार..
सुविचार..
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
"बोली-दिल से होली"
Dr. Kishan tandon kranti
Dr Arun Kumar Shastri
Dr Arun Kumar Shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हे राम !
हे राम !
Ghanshyam Poddar
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
तारीख़ के बनने तक
तारीख़ के बनने तक
Dr fauzia Naseem shad
छोटी-छोटी खुशियों से
छोटी-छोटी खुशियों से
Harminder Kaur
Loading...