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17 Jan 2017 · 1 min read

बेटियाँ

देश क्या परदेश में भी, छा रहीं हैं बेटियाँ
हर ख़ुशी को आज घर में, ला रहीं हैं बेटियाँ

बाग हमने जो लगाये, थे यहाँ पर देख लो
फूल सबमें अब खिला महका रहीं हैं बेटियाँ

राह है मुश्किल बहुत, मजबूत उनकी चाह है
चोटियों पर आज चढ़ती, जा रहीं हैं बेटियाँ

काम उनका दिख रहा है, नाम उनका हो रहा
फल यहाँ पर मेहनतों का, पा रहीं हैं बेटियाँ

भावना है त्याग की सम्मान है सबके लिये
हर जगह सबके दिलों को भा रहीं हैं बेटियाँ

खेल हो, विज्ञान हो, चाहे सुरक्षा देश की
जिंदगी का हर तराना, गा रहीं हैं बेटियाँ
रचना – बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर

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