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10 Jan 2017 · 1 min read

बेटियाँ

एक बार घटित हुआ वो किस्सा
फिर उसने शोर मचाया सबको जगाया
जग जग मै चर्चित होकर थम सा गया
ये किस्सा था बेटियों के जन्म मै मरण का

जमाना आगे निकल गया
अब सब कुछ बदल सा गया
फिर भी क्या आम था इस समाज मै
प्रतिशत कन्या का सब कह गया

सामाजिक क्रूरताओ का बोझ
उसके कंधों पर ही क्यू टिका है
क्या कन्या औरत के बेस मै
चलता फिरता कोई नगीना है
जो चमकने से दुष्कर्म पीड़ा
आदि की मोहताज है

क्या कुछ नहीं सहती वो
कन्या जींदा दिल तबीयत मै बेठी
मुर्दा दिल हैवान है वो
वो कैसे अपने गम बोले
सहती पीड़ा के राज खोले
हक भी तो नहीं है उसे
सिवाय रोटी-चूल्हा-चोंकी के

बेटियों पे अत्याचार
रिवाज भी तो है पुराना
परम्पराओ को बनाये रखना
मानव जाती का प्रमुख हिस्सा

फिर कैसे पाओगे बेटा जब
कन्याओ को ही मरवाओगे
एक माँ का प्यार समझ सको तो
समझ लेना बेटियाँ उनकी दूसरी छायां

आओ मिल कर आज ये शपत ले
बेटियाँ बेटों के है समान समझ ले
हर सुख हर आजादी उनके हिस्से का
तोड़ के सामाजिक जंजीरे बोल दे
बेटी है तो कल है
बेटी है तो जीवन है

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