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7 Jun 2017 · 1 min read

*** बूंद बूंद सिंचाई ***

7.6.17 दोपहर 1.41

मैंने बूंद-बूंद सिंचाई कर प्यार को सींचा

आजकल प्यार-जमीं बंजर होती जा रही

आ रही है थोक-बाज़ार-फसल प्यार की

ना जाने कौन – दूषित-कैमिकल मिली

जो बन्द करदे चंद -दिल- धड़कनो को

ना जाने कौन-सा घोला ज़हर-जिंदगी में

मैंने बूंद-बूंद सिंचाई कर प्यार को सींचा

क्योंकि आज किल्लत है प्यार-जल की

फ़सल हो अन्न या फिर फसल- प्यार

जलबिन जल रही देह या फिर हो जमीं

कमी है एक फिर-फिर अपने स्वार्थ की

दोहन करते हम अच्छी बात है ये मगर

सोंख ले हम सब सार जीवन दिल-जमीं

कुछ सीखो प्यार-जल की है बहुत कमी

सरसाये है बहु-वृक्ष सिर्फ जमीं- नमी

मैंने बूंद-बूंद सींचाई कर प्यार को सींचा

आजकल प्यार-जमीं बंजर होती जा रही

लुटाये प्यार-जल व्यर्थ होता जा रहा है

धरती-व्यर्थ-जल-प्यार होता जा रहा है

मैंने बूंद-बूंद सिंचाई कर प्यार को सींचा

आजकल प्यार-जमीं बंजर होती जा रही
।।

?मधुप बैरागी

Language: Hindi
1 Like · 729 Views
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