बिरहन (कविता)
थकित पग और,
शिथिल ,क्षीण काया।
काया के रूप में,
प्रतीत हो रही वोह छाया।
नयनोँ में अजस्त्र अश्रु-धारा,
और अधरों पर निस्तब्धता।
केश उसके है अनसुलझे हुए,
और ललाट पर रेखाओं की क्रमबध्त्ता।
आकर खड़ी हुई वो,
उस क्षितिज पर।
जहाँ जीवन व् मृत्यु का,
मिलन होता है।