बसंत बहार — डी. के. निवातिया
बसंत बहार
बागो में कलियों पे बहार जब आने लगे, खेत-खलिहानों में फसले लहलाने लगे !
गुलाबी धूप पर भी निखार जब आने लगे, समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
भोर में रवि की किरण पे आये लाली
कोयल कूक रही हो अमवा की डाली
पेड़ो पर नई नई कोपले निकलने लगे
और आँगन में भी गोरैया चहकने लगे
समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
बागो में कलियों पे बहार जब आने लगे, खेत-खलिहानों में फसले लहलाने लगे !
गुलाबी धूप पर भी निखार जब आने लगे, समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
गुलाब, गेंदा, सूरजमुखी, सरसों आदि के फूल
तितलियाँ और भँवरे उनपर मंडराये झूम झूम,
फूलों की सुगंध से मादकता का भान होने लगे
मनमोहक हो फिजा का आलम गुदगुदाने लगे
समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
बागो में कलियों पे बहार जब आने लगे, खेत-खलिहानों में फसले लहलाने लगे !
गुलाबी धूप पर भी निखार जब आने लगे, समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
पेडों से पुरानी पत्तियाँ झड़ने लगती हैं
उन से कोमल पत्तियों उगने लगती हैं
उल्लास -उमंग का आभास होने लगे
बसंत दूत कामदेव भ्रमण करने लगे
समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
बागो में कलियों पे बहार जब आने लगे, खेत-खलिहानों में फसले लहलाने लगे !
गुलाबी धूप पर भी निखार जब आने लगे, समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
ब्रज धाम में गोपियाँ नृत्य करने लगे
कृष्ण प्रेम डूब राधा रूप वो धरने लगे
देखकर ये विहंगम दृश्य राधे – श्याम
स्वर्ग से जमीं की और पग धरने लगे
समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
बागो में कलियों पे बहार जब आने लगे, खेत-खलिहानों में फसले लहलाने लगे !
गुलाबी धूप पर भी निखार जब आने लगे, समझ लेना के बसंत बहार आ गयी !!
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(डी. के. निवातिया )