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22 Jun 2016 · 1 min read

“बरसात”

तब हम परेशां थे इस बारिश से..
अब तो रोना है साहब रोना ……
———————-
बचपन में जब बारिश का आना
कर देता हम बच्चों का हँसाना
गुल्दस्ते वो गुलफ़ारियां वो मस्ती !
*************-*
खेत में भी किसान का ठहासा था
काम करता भीगे-भीगे
उसे नहीं खबर अपनी मगर
अंदर ही अंदर वो खुश जरुर था !
***************
वो धान की रोपाई
वो लेपा वो पोथी
बारिश का पानी
पानी का बहाव !
*********************
आज बदल गया वक्त
किसान तो बस निशां रह गया
जीते जी जी न सका !
————————————
तब हम परेशां थे इस बारिश से..
अब तो रोना है साहब रोना ……
***********
कभी हथेली माथे पर
गुहार कभी तो कभी
फूटकर आँशुओ की फुहार भी !
****************
वो दौर अच्छा था धूप थी
बरसात भी मगर सच्ची थी
आज उड़ता आता है उड़ता ही जाता है !
**************
शहर भी छोटा हो या बडा कोई
बरसात अगर हो भी गई
इक तरफ़ बेहाल हुआ
इक तरफ़ तो सूखा ही रहा !
***************
कुदरत करिश्मा है या
हमारा ही कोई दोष
कुदरत तो कुदरत ही हुआ
हम भी सब निर्दोष !
———————————–
तब हम परेशां थे इस बारिश से..
अब तो रोना है साहब रोना ……
——————————-बृज

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 719 Views
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