” बन्द आँखों में , ऐसी सिमटी हया ” !!
साज है , श्रृंगार है ,
मान है , मनुहार है !
भेद रही नज़रें जो ?
वहां खोया संसार है !
ताले जुबाँ पर –
तुमने जो छू लिया !!
बातें मुलाकातें सब ,
दिन क्या ?रातें अब !
मैं भी मेरी ना रही ?
जाने क्या हुआ अजब !
दर्द हिमखंडों सा –
जैसे पिघल गया !!
हाथों में हाथ थाम ,
पल पल को दे विराम !
कैसी ठगी कर ली ?
मच गया कोहराम !
भूला बिसुरा जो –
कैसे कर दूँ बयां !!
बृज व्यास