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1 Sep 2017 · 2 min read

बदलते युग में शिक्षा के बदलते उद्देश्य और महत्व

शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो जीवन को एक नई विचारधारा प्रदान करता है। यदि शिक्षा का उद्देश्य सही दिशा में हो तो आज का युवा मात्र सामाजिक रूप से ही नहीं बल्कि वैचारिक रूप से भी स्वतंत्र और देश का भावी कर्णधार बन सकता है। परंतु आज हमारे समक्ष विडंबना ये है कि भारतीय शिक्षा पद्धति अपने इस उद्देश्य में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर सकी है।
पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में कई अहम बदलाव देखने को मिले है। ये बदलाव कईं मायनों में अच्छे भी हैं और बुरे भी। आज हम जिस उद्देश्य से बच्चो को शिक्षा दे रहे है उससे पूर्व हमे बच्चो को शिक्षा के महत्व को समझाना जरूरी है जो उन्हें समाज के एक अच्छा नागरिक बनने में मदद करे सर्व कुटुम्बकम सर्वस्य की भावना उनके भीतर जागृत करें | उसके अन्दर यह भावना उत्पन्न की जाये की वह एक समाजिक प्राणी है उसका समाज के प्रति अपने कर्तव्य है उसका पूरी इमानदारी से निर्वाह करे अपने से ऊपर उठकर समाज और देश के भले के बारे में विचारे |
ज्ञात हो कि ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ के अमल में आने से सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों, महिलाओं व बच्चियों तक शिक्षा पंहुचाकर, उन्हें मुख्यधारा से जोड़ना ही इस कानून का प्रथम उद्देश्य रहा है।
आज शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी यानि (पीपीपी) के तहत 93 फीसदी स्कूली शिक्षा सरकार उपलब्ध करा रही है। वहीं केवल 7 प्रतिशत प्राइवेट स्कूल है। सरकार का उद्देश्य मुख्य रूप से बच्चों को क्वालिटी शिक्षा उपलब्ध करना है।परंतु वहीं उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी भागीदारी के बिना काम चला पाना मुश्किल है, और यही कारण है कि वर्तमान में इंजीनियरिंग में आज 90 फीसदी और मेडिकल में 50 फीसदी कॉलेज प्राइवेट है। जिससे प्रत्यक्ष रूप से जाहिर होता है कि सरकार बिना निजी भागीदारिता के इस क्षेत्र में क्वालिटी एजुकेशन के अपने सपने को साकार नहीं कर सकती है। एक तरफ जहां शिक्षा के क्षेत्र में निजी व विदेशी भागीदारी बढ़ी है, वहीं प्रफेशनल व वोकेशनल एजुकेशन पर भी काफी जोर दिया जा रहा है। सरकार का लक्ष्य शिक्षा को सीधे रोजगार से जोड़ना है।
परंतु बच्चों के भविष्य को गढ़ने वाली यह पाठशाला आजकल एक ऐसे भयावह काले वातावरण से घिरती जा रही है जिससे निकलना फिलहाल तो काफी मुश्किल नजर आ रहा है। यह काला स्याह वातावरण व्यावसायिकता का है, जिसने अच्छी शिक्षा को सिर्फ रईस वर्ग की बपौती बनाकर रख दिया है। जहां डोनेशन के रूप में भारी रकम वसूली जाती है.
कुल मिलाकर अब ये देखने की आवश्यकता है अब शिक्षा मात्र कुछ ही वर्गों तक सिमट कर न रह जाएं। सरकार जिस ‘क्वालिटी एजुकेशन’ के एजेंडे को लेकर चल रही हैं वह बस ख्याली पुलाव न रह जाए, हकीकत में भी सरकार सभी वर्गों के बच्चों को वही क्वालिटी एजुकेशन मुहैया कराएं।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 2 Comments · 4383 Views
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