फूल खारों में मुस्कुराते हैं
आप ख़ाबों में जब भी आते हैं ।
सोनेे देते नही सताते हैं ।।
दिल मिरा बस तड़प के रह जाता ।
दूर हमसे जो आप जाते हैं ।।
प्यार मेरा उन्हें रुलाएगा ।
आज़ जैसे हमें रुलाते हैं ।।
जो दिवाने असल में होते हैं ।
जख़्म खाते हैं मुस्कुराते हैं।।
हम निभाते वफ़ा को मर के भी ।
दिल किसी से अगर लगाते हैं ।।
तोड़ कर दिल गया है वो जब से।
बोझ जख़्मों का हम उठाते हैं ।।
दिल जला कर सुकूँ न पाते वो।
जब्त को मेरे आज़माते हैं ।।
दफ़्न सीने में हसरतें मेरी ।
अश्क़ फिर भी नहीं बहाते हैं ।।
राह में जो मिला मुझे हँस कर।
साथ सबका ही हम निभाते हैं ।।
जख़्म खाकर भी हँस रहा हूँ मैं ।
देख वो खूब तिलमिलाते हैं ।।
जो भटकने लगे हैं राहों से।
राह उनको सही दिखाते हैं ।।
मैं भला खुश न क्यूँ रहूँ “प्रीतम”।
फूल खारों में मुस्कुराते हैं ।।