फूलों सी खिलती हैं अब मुस्कान कहाँ
फूलों सी खिलती हैं अब मुस्कान कहाँ
चिड़ियों के भी पहले जैसे गान कहाँ
आज एक ही बच्चे से परिवार बने
रत्नों जैसे रिश्तों की अब खान कहाँ
पैर बड़ों के छूने की अब रीत नहीं
आँखों में भी शर्म हया या मान कहाँ
मस्ती स्वार्थ दिखावा है अब प्यार सुनो
आज प्यार में गहराई का भान कहाँ
संबंधों औ पैसों का ही नाम चले
आज गुणों को मिलता वो सम्मान कहाँ
चन्दा देकर सिद्ध करें जो काम गलत
कहते हैं व्यापार इसे ये दान कहाँ
हमें बहुत सी बात सिखाता वक़्त सुनो
सिर्फ किताबों से सब मिलता ज्ञान कहाँ
भूले से हो गंगा में वो पाप धुलेँ
दुष्टों पापी का ये गंगा स्नान कहाँ
कदम कदम पर देखो हैं संघर्ष बहुत
मानव जीवन इतना भी आसान कहाँ
आज ‘अर्चना’ पैसा ही भगवान हुआ
रही दिलों में भावों की अब जान कहाँ
डॉ अर्चना गुप्ता
19-10-2015