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28 Aug 2017 · 1 min read

“प्रीत जिया को दुलराती है” (गीत)

प्रीत जिया को दुलराती है

रात चाँद के साथ बिताकर
रजत चाँदनी मन भाई है।
प्रमुदित मन से उन्मादित हो
रजनी ने ली अँगड़ाई है।
अलसाए सपनों से जागी-
कोमल काया मदमाती है।
प्रीत जिया को दुलराती है।।

भोर में रश्मि आच्छादित नभ
भानु के संग इठलाती है।
विरह वेदना सहकर रजनी
नीली चूनर सरसाती है।
तपिश देह की दूर हो गई-
धवल रूपश्री मुस्काती है।
प्रीत जिया को दुलराती है।।

निर्मल जल में नहा प्रेम से
धवल रूप श्रृंगार किया है।
माँग सितारे फूल सजाए
प्रीतम ने आगोश लिया है।
खिली रजत सी कोमल काया-
देख चंद्र मुख इतराती है।
प्रीत जिया को दुलराती है।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी(मो.-9839664017)

Language: Hindi
Tag: गीत
530 Views
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