Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 Sep 2016 · 5 min read

प्राथमिक शिक्षा का अधिकार

प्राथमिक शिक्षा का अधिकार

********************************

भारत सरकार काफी समय से एक मिशन चला रही है जिसका नाम है ‘शिक्षा का अधिकार’ | इसके लिए सरकार ने प्राइवेट चल रहे स्कूलों में भी कुछ स्थान आरक्षित किये हैं | मगर शिक्षा से वंचित अधिकाँश बच्चों का सहारा तो सरकारी विद्यालय ही हैं | मगर ये नौनिहाल किस हाल में पढ़ रहे हैं क्या सरकार ने कभी इस पर ध्यान दिया है | प्राइवेट संस्थाओं के विषय में क्या कहना उन्हें तो पैसा ही पढ़ाने का मिल रहा है, अगर पढ़ाएंगे नहीं तो कमाएंगे क्या ? मगर हम बात करते हैं उन संस्थाओं की जो सरकार के ही हाथों में हैं |

कहा जाता है जिस मकान की नींव जितनी मजबूत होगी वो मकान उतना ही अधिक मजबूत होगा | यही कथन शिक्षा में विषय में भी कहा जा सकता है | अगर बच्चे की प्राथमिक शिक्षा अच्छी हुई है तो वो आगे चलकर न सिर्फ अच्छा विद्यार्थी बनेगा वरन अपने अभिभावकों सहित देश, क्षेत्र का भी नाम रौशन कर सकता है |

चूंकि मैं उत्तराखंड का निवासी हूँ तो यहीं की बात करता हूँ | मैं सुनता हूँ प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या बहुत कम है | कहीं पर २० बच्चे हैं तो कहीं पर ३० बच्चे हैं | लेकिन मेरा सवाल है यहाँ पर प्राथमिक विद्यालयों में कोई अपने बच्चे क्यों पढाये ? सिवाए खाने अगर कोई वाजिब वजह है तो कोई बताये ?

उत्तराखंड में भौगोलिक परिस्थितियाँ मैदानी राज्यों से भिन्न हैं मगर दूसरे पहाड़ी राज्य भी ऐसी ही कठिनाइयों का सामना करते होंगे ऐसा मुझे लगता है | यहाँ पर पहाड़ी स्थानों पर कुछ विद्यालय तो ऐसी जगहों पर स्थित हैं कि वहां तक जाने के लिए शिक्षकों को पढ़ाने के लिए १५ से २० किमी तक पैदल ही जाना पड़ता है | बच्चों को भी ३ से ४ किमी तक तो पैदल चलना ही पड़ता है | ये पैदल चलना कोई सामान्य चलना नहीं है, चढ़ाई करनी पड़ती है पहाड़ों पर | सबसे पहले तो ऐसी जगहों पर कोई अपनी पोस्टिंग नहीं करवाना चाहता , यहाँ तक कि खुद ऐसी ही जगहों के निवासी भी इन विद्यालयों में नहीं पढ़ाना चाहते | उसके लिए सरकार ने नियम बनाए हैं जिसके अंतर्गत नवनियुक्त शिक्षकों को दुर्गम और अतिदुर्गम स्थानों पर निश्चित समय तक कार्य करना आवश्यक है |

ये तो रही बात शिक्षकों और विद्यालयों की | अब बात करते हैं पढ़ाई की | उत्तराखंड राज्य में प्राथमिक विद्यालयों के लिए एक कांसेप्ट चल रहा है जिसको नाम दिया गया है एकल विद्यालय | इसमें विद्यालय की पूरी जिम्मेदारी सिर्फ एक ही शिक्षक के जिम्मे होती है | एक शिक्षक और ५ कक्षाएं ! कैसे और क्या पढ़ायेंगे शिक्षक ? खाना बनवाना, पत्राचार करना, विभाग की ऑफिस के चक्कर लगाना, कभी कोई हारी बिमारी भी होती है, छुट्टियों पर घर भी जाना होता है | तो ऐसी परिस्थितियों में बच्चे क्या पढेंगे ? कैसे होगी नींव मज़बूत ? और कैसे ये बच्चे अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपना जीवन स्तर ऊंचा उठा पायेंगे ? प्राथमिक शिक्षकों के पास सिर्फ पढ़ाने का ही काम नहीं होता, बल्कि उनको पचास तरह के काम और सौंप दिए जाते हैं | कभी जनगणना कभी पशुगणना, कभी वोटर पंजीकरण कभी वेरिफिकेशन कुछ न कुछ लगा ही रहता है ? तो क्या सिर्फ बच्चों को खाना खिलाने के लिए ही एकल शिक्षक वाले प्राथमिक विद्यालय खोले गए हैं ? आखिर औचित्य क्या है एकल विद्यालयों का ?

कुछ शिक्षक बहुत अच्छा प्रयास कर रहे हैं लेकिन वो अपवाद हैं | अधिकतर शिक्षक सिस्टम में आकर सिस्टम की ही तरह काम करते हैं, अपने स्तर से विद्यालय में बच्चों की संख्या बढाने के लिए कोई प्रयास ही नहीं करते | इसकी एक बानगी मैंने अपने ही एक मित्र की बातों में देखी | हम तीन मित्र एक शाम को बैठे थे और बात चली शिक्षा के स्तर की | तीनों में एक मित्र एक एकल प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक हैं और वो इस नौकरी में आने से पहले अंग्रेजी की कोचिंग करवाते थे और आज भी करवा रहे हैं | बात शुरू हुई शिक्षा का अधिकार विषय से, उनका कहना है कि इसकी वजह से प्राथमिक विद्यालयों की दुर्दशा हो रही है | लोग अपने बच्चों को सरकारी विद्यालय में भेजते ही नहीं हैं | हमने उनकी बातों को नकारा नहीं, कुछ हद तक उनकी बात भी सही थी |

फिर मैंने उनसे कहा, “आप एक बताएं, जनता का ध्यान प्राइवेट विद्यालयों की तरफ आकर्षित क्यों होता है ?” उम्मीद के मुताबिक उन्होंने कहा, “ वहां पर बच्चों की अंग्रेजी शिक्षा दी जाती है जिससे बच्चों को आगे बढ़ने में सहायता मिलती है |” इस पर मैंने अगला सवाल किया, “फिर आपके विद्यालय के बच्चे क्या सीख रहे हैं, आप उनको क्या सिखा रहे हैं ?” वो थोड़े से भड़के और बोले, “पढ़ाने का समय ही कहाँ मिलता है, पढ़ाई के अलावा भी पचास काम हमारे जिम्मे हैं | पढ़ाएं कब और क्या पढ़ाएं, बच्चों को रोक लेते हैं यही बड़ी बात है, वो भी सिर्फ खाने के लिए ही आते हैं |”

अब हमारे सवाल जवाब चलने लगे थे, तीसरा मित्र कभी न्यूट्रल कभी मेरे पक्ष में बात कर रहा था | हमने कहा, “ सर आप अपने स्तर से अपने स्कूल में बच्चे बढाने के लिए क्या कर रहे हैं ? थोडा सा अलग करिये तो आपके विद्यालय में बच्चे निश्चित ही बढ़ेंगे |” अब यहाँ से चर्चा में एक नया मोड भी आने लगा, मित्रवर बोले, “सन्दीप जी, क्या अलग करें, सारी मलाई और पुरुष्कार तो ये ऊंची जाति वाले मास्टरों को ही मिलते हैं, अनुसूचित जाति वालों को तो कोई पूछता ही नहीं|” ( क्योकि हमारी चर्चा वाले दिन उत्तराखंड से राष्ट्रपति पुरुष्कार प्राप्त करने वाले शिक्षकों की सूची जारी हुई थी और उस सूची में ज्यादातर अध्यापक ब्राहमण थे, इसीलिए ये बात उन्होंने कही ) हमने कहा,”सर पुरुष्कार के लिए नहीं, बच्चों के लिए तो आप अलग कर ही सकते हैं ?” “सन्दीप जी आप सिस्टम को जानते नहीं हो तभी ऐसी बात कर रहे हो, हम अलग करें भी तो ये सिस्टम कुछ करने नहीं देता |” हम दोनों ने उनको कुछ विद्यालयों के नाम गिनवाए जहाँ के शिक्षक कुछ अलग हटकर करने की कोशिश कर रहे थे | फिर उनसे कहा, “ सर अगर आप सिर्फ एक घंटा ज्यादा अपने विद्यालय के बच्चों को दें और उस घंटे में उनको वो शिक्षा दें जो आप अपनी कोचिंग में पैसे लेकर देते हैं, तो आपके विद्यालय में क्षेत्र में सबसे ज्यादा बच्चे हो सकते हैं, अगर बच्चे न बढें तो कहियेगा | इस तरह आपको हो सकता है पुरुष्कार भले न मिले मगर बच्चों का तो भला हो हो ही जाएगा |” मगर जनाब सिस्टम सिस्टम ही करते रहे, मगर कुछ अलग करने को तैयार नहीं हुए | हमने भी कहा, कोई नहीं, मगर ड्यूटी तो करते ही रहिये सर, ये जाति पांति की बात को छोडिये |

तो अब कोई ये बताये क्या करेगा शिक्षा का अधिकार जब प्राथमिक शिक्षा ही ढंग से नहीं मिल पाएगी ?

शिक्षकों से सिर्फ शिक्षण का ही कार्य करवाया जाये, अन्यथा सभी विद्यालयों को सरकार के अधीन पब्लिक-प्राइवेट भागीदारी के अंतर्गत संचालित करवाया जाए, जहाँ पर शिक्षकों की नियुक्ति सरकार के द्वारा हो तथा प्रबंधन प्राइवेट हाथों में हो | शुल्क पर सरकार का नियंत्रण हो |

“सन्दीप कुमार”

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Comments · 525 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"विपक्ष" के पास
*Author प्रणय प्रभात*
🙏❌जानवरों को मत खाओ !❌🙏
🙏❌जानवरों को मत खाओ !❌🙏
Srishty Bansal
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-151से चुने हुए श्रेष्ठ दोहे (लुगया)
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-151से चुने हुए श्रेष्ठ दोहे (लुगया)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
गीत
गीत
सत्य कुमार प्रेमी
* हर परिस्थिति को निजी अनुसार कर लो(हिंदी गजल/गीतिका)*
* हर परिस्थिति को निजी अनुसार कर लो(हिंदी गजल/गीतिका)*
Ravi Prakash
जीवन में प्राथमिकताओं का तय किया जाना बेहद ज़रूरी है,अन्यथा
जीवन में प्राथमिकताओं का तय किया जाना बेहद ज़रूरी है,अन्यथा
Shweta Soni
हमारा सब्र तो देखो
हमारा सब्र तो देखो
Surinder blackpen
किस दौड़ का हिस्सा बनाना चाहते हो।
किस दौड़ का हिस्सा बनाना चाहते हो।
Sanjay ' शून्य'
आईना
आईना
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
In lamho ko kaid karlu apni chhoti mutthi me,
In lamho ko kaid karlu apni chhoti mutthi me,
Sakshi Tripathi
तारीफ किसकी करूं
तारीफ किसकी करूं
कवि दीपक बवेजा
2456.पूर्णिका
2456.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
सूखी नहर
सूखी नहर
मनोज कर्ण
बारिश की मस्ती
बारिश की मस्ती
Shaily
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
संसार में सही रहन सहन कर्म भोग त्याग रख
संसार में सही रहन सहन कर्म भोग त्याग रख
पूर्वार्थ
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
gurudeenverma198
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
गमों के साथ इस सफर में, मेरा जीना भी मुश्किल है
Kumar lalit
💐अज्ञात के प्रति-134💐
💐अज्ञात के प्रति-134💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ज़िंदगी
ज़िंदगी
Dr. Seema Varma
संग दीप के .......
संग दीप के .......
sushil sarna
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
DR ARUN KUMAR SHASTRI
93. ये खत मोहब्बत के
93. ये खत मोहब्बत के
Dr. Man Mohan Krishna
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
पितरों के सदसंकल्पों की पूर्ति ही श्राद्ध
कवि रमेशराज
मातु शारदे वंदना
मातु शारदे वंदना
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
बारिश पर लिखे अशआर
बारिश पर लिखे अशआर
Dr fauzia Naseem shad
ईश्वर अल्लाह गाड गुरु, अपने अपने राम
ईश्वर अल्लाह गाड गुरु, अपने अपने राम
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ऐ वतन
ऐ वतन
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
तू तो होगी नहीं....!!!
तू तो होगी नहीं....!!!
Kanchan Khanna
"कहीं तुम"
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...