प्रक्रति ने हम सब पर उपकार किया है
प्रक्रति ने हम सब पर उपकार किया है
सुंदर सा जीवन देकर हमारा उद्धार किया है
प्रक्रति ने हमे बहुत कुछ दिया है
हमने प्रक्रति से सब कुछ छीन लिया है
ऊँचे-ऊँचे आशियाना बना धरती माँ का सीना चिर दिया है
अन्न उपजती धरती को बंजर कर छोड़ दिया है
नदियों के राह को मोड़ मनुष्यों ने झकझोर दिया है
टप टप बरसे नदिया ये कैसा प्रकोप किया है
पेड़ पौंधे जंगल से काट नंगा छोड़ दिया है
कंक्रीट पत्थर को खड़ा कर उनसे रिश्ता जोड़ लिया है
फल देने वालों पेड़ो को हे मूर्ख तूने काट दिया है
अपने स्वार्थ के लिए जंगल को उजाड़ दिया है
दमा बढ़ा है, धरती पर हवा को दूषित किया है
चतुर मनुष्य तू भी देख, प्रक्रति को तूने कितना शोषित किया है
उजड़ रही है धरती अपनी ये कैसा विकास किया है
मर रहे है सब भूखे प्यासे ये तूने ही विनाश किया है
हो रही है तबाही हर देश के कोने में
कभी बाढ़,तो कभी सुखा, बढ़ रही आपदाए
तुम्हारे विकसित होने में
हे मूर्ख क्यों अपने पैरो में कुल्हाड़ी मार रहा है
संभल जा वक्त पर, क्यों अस्तित्व अपना उजाड़ रहा है
बिमारी का पहाड़ आज तूने ही खड़ा किया ही
प्रक्रति से खेल तू ही बता ये कैसा विकास किया है
भूपेंद्र रावत
10 /09/2017