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10 Aug 2017 · 1 min read

पेश वो अदब से आते नही

पेश अदब से वो अब आते नही
दुखड़ा अपना अब सुनाते नही

दोस्ती फरिश्तों से कर ली है
अपना अब वो हमें बताते नही

मुस्करा कर वो दूर जाते रहे
हिज़्र में अब मोती आते नही

किनारों में आशियाना बना लिया
मँझधार में अब साथ निभाते नही

नफरत कर ले चाहे वो अब बेइंतहा
याद करने के बहाने उनको आते नही

चाँद की छांव में बैठना छोड़ दिया
सितारों से अब वो बतियाते नहीं

हवा की मौजो में कश्ती बहने दो
राह दिखाने अब वो आते नही

बज़्म सजाए बैठे है उनकी यादों में
चार चाँद लगाने अब वो आते नही

दर्द में उनके तड़प रहे है “भूपेंद्र”
अब वो मरहम लगाने आते नही

भूपेंद्र रावत
10।08।2017

1 Like · 300 Views
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