पाकीज़ा मोहब्बत
लिख कर खत तूने,कहीँ तो छुपाया होगा
सपनो में ही सही,मुझे अपना बनाया होगा
हम नज़रो से ही बाते करते रह गए
तूने भी मेरी तरह रातो को जलाया होगा
बेबसी क्या थी आज तक न समझ पाए हम
फिर मिलेंगे कभी हम तुम
तुमने भी दिल को समझाया होगा
इंतज़ार करता रहा मैं भी तेरी ही तरह
रास्ते बदल गए मंज़िल एक बताया होगा
ये अचानक फिर कहां से हम पास आ गए
इसके लिए दोनों ने खुदा का शुक्रिया मनाया होगा
ज़रूरी नही मोहब्बत में शरीरों का मिलना
ये पैगाम हमे देख कर लोगो ने पाया होगा
खुश तो हम बहुत थे एक दूसरे को देखकर
घर जाकर फिर से खत बच्चों को पढ़ाया होगा
यकीनन इज़्ज़त और बढ़ गई होगी मेरी
जब बच्चों ने मुझे फरिश्ता बताया होगा
कवि : अजय “बनारसी”