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14 May 2017 · 1 min read

परी है माँ

एक शिशु के लिए परी है माँ
काम सारे करे भली है माँ

जब मचलता सदा रहे बालक
तब मुहब्बत भरी नदी है माँ

लाड़ली जब चले पढाई को
सीख देती सही सखी है माँ

हो बड़ी जब सजे संवरती वो
मनचलों से बड़ी डरी है माँ

शाम को देर तक न लोटे जब
आँख में अश्रु से भरी है माँ

जब नयी राह पर बढी बिटियाँ
तब सभी कष्ट से दबी है माँ

ब्याह कर जब गयी पराये घर
तब खुशी में बहुत फली है माँ

नाम बेटी कमा रही हो तब
तान सीना तभी खडी है माँ

देख छूता उसे गगन को तब
पेड़ पर फूल सी खिली है माँ

देख आगे पुरूष से उनको
रोज दीपावली मनी है माँ

इस धरा जब तलक रहेगी माँ
कल्प हर शक्ति ही रही है माँ

डॉ मधु त्रिवेदी

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